________________ आगम निबंधमाला महर्द्धिक देव(चमरेंद्र सरीखे) यदि अपनी ऋद्धि शक्ति किसी श्रमण-माहण को दिखावे, उसमें वह पृथ्वी पर प्रहार आदि करे तो संपूर्ण पृथ्वी में कंपन होता है वह भी सर्व भूकम्प है / (3) हमारी इस पृथ्वी पर असुरकुमार देवों या देवेन्द्रों का और वैमानिक देवों या इन्द्रों का परस्पर युद्ध हो जाय, जिसमें उनके पाँवों के प्रहार आदि से इस पृथ्वी में सर्वकंपन होता है तब समस्त भूमंडल पर एक साथ में भूकंप होता है। देवों में परस्पर कभी भी विशाल युद्ध होता है तो वह तिरछा लोक में ढाई द्वीप के बाहर की भूमि पर होता है। यहाँ पर देश भूकंप के कारणों में 'महोरग' शब्द के साथ 'देव' शब्द नहीं है फिर भी महोरगदेव(व्यंतर) अर्थकरने की परंपरा है। किंतु वह अर्थ यहाँ समीचीन नहीं होता है / क्यों कि देवों के संग्राम से भूमिकंप होना आगे कहा ही है। अत: यहाँ महोरग शब्द का उरपरि-सर्प जाति का महोरग अर्थ करना ही प्रासंगिक है / ऐसे उरपरिसर्प भूमि में जन्मते-मरते ही रहते हैं। जिसके कारण देश भूकंप मानव लोक में आते ही रहते हैं / ये उरपरिसर्प अनेक किलोमीटर प्रमाण लंबाई वाले भी हो जाते हैं और मुहूर्त मात्र में ही मर भी जाते है। . निबंध-६२ साधु तथा श्रावक के तीन,मनोरथ प्रस्तुत प्रकरण में तीन की संख्या का कथन है अतः साधु-श्रावक के जीवन की समस्त मनोकामनाओं को यहाँ तीन-तीन श्रेष्ठ मनोरथों के माध्यम से कहा गया है और विशेषता यह बताई गई है कि जहाँ संसार की रुचि वाले मनोरथ-लालसाएँ निरर्थक कर्म बंध और संसार बढाने वाली होती है, वहीं ये साधु-श्रावक के मनोरथ नित्य आत्मा में भावित करने से, आत्मा को संस्कारित करते रहने से वर्तमान में मात्र भावों से ही महान कर्मों की निर्जरा होती है और भावी जीवन में यथासमय ये पुष्ट किये गये संस्कार सहज ही कार्यान्वित हो जाते हैं। साधु के तीन मनोरथ :- श्रमण-निग्रंथ इस भावना से आत्मा को भावित करे कि- (1) वर्तमान में जितने भी शास्त्र-आगम उपलब्ध है, उनका संपूर्णत: अर्थ परमार्थ विवेचना युक्त अध्ययन करूँ; अधिकतम श्रुत को [ 120