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________________ आगम निबंधमाला निबंध-१ . - दस प्रत्याख्यान एवं उनके आगार प्रतिक्रमण एवं विशुद्धिकरण के पश्चात् तप रूप प्रायश्चित्त स्वीकार किया जाता है जो आत्मा के लिये पुष्टिकारक होता है / तप से विशेष कर्मों की निर्जरा होती है। अतः छठे आवश्यक (अध्याय)में इत्वरिक अनशन तप के 10 प्रत्याख्यान के पाठ कहे गये हैं / इसमें संकेत प्रत्याख्यान भी है एवं अद्धा प्रत्याख्यान भी है। (1) नमस्कार सहितं (नवकारसी)- इस पाठ में सहियं शब्द का प्रयोग हुआ है जो गंठि सहियं, मुट्ठिसहियं के प्रत्याख्यान के समान है। अतः सहित शब्द की अपेक्षा यह संकेत प्रत्याख्यान होता है। संकेत प्रत्याख्यानों में काल की निश्चित मर्यादा नहीं होती है। ये संकेत निर्दिष्ट विधि से कभी भी पूर्ण (समाप्त)कर लिये जाते हैं यथा- गांठ खोलने से, नवकार गिनने से / - काल मर्यादा नहीं होने से संकेत प्रत्याख्यानों में सर्व समाधि प्रत्ययिक आगार नहीं होता है क्यों कि पूर्ण समाधि भंग होने की अवस्था के पूर्व ही संकेत पच्चक्खाण कभी भी पार लिया जा सकता है। तदनुसार नवकारसी के मूलपाठ में भी यह आगार नहीं कहा गया है और नमस्कार सहितं शब्द प्रयोग किया गया है। इसलिये यह अद्धा प्रत्याख्यान नहीं है किन्तु संकेत पच्चक्खाण है अर्थात् समय की कोई भी मर्यादा इसमें नहीं होती है, सूर्योदय के बाद कभी भी नमस्कार मंत्र गिन कर यह प्रत्याख्यान पूर्ण किया जा सकता है। शेष सभी(९) अद्धा प्रत्याख्यान है / नवकारसी प्रत्याख्यान में चारों आहार का त्याग होता है एवं दो आगार होते हैं- भूल से खाना और अचानक सहसा मुँह में स्वतः चले जाना / वर्तमान में इसके 48 मिनट समय निश्चित्त करके इसे अद्धाप्रत्याख्यान में माना जाता है। अतः पाठ में आगार भी सुधार लेने चाहिये अर्थात पाठ में तीन आगार बोलने चाहिए / (2) पोरिसी- चौथाई दिन को एक पोरिसी कहते हैं / सूर्योदय से लेकर पाव दिन बीतने तक चारों आहार का त्याग करना पोरिसी
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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