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________________ आगम निबंधमाला / हुई चोक्खा परिव्राजिका के द्वारा मल्लिकुँवरी का वर्णन सुनकर आकृष्ट हुआ / इन छहों राजाओं ने मल्लिकुँवरी से शादी करने की मनोदशा से दूत भेजा / संयोगवश छहों दूत अपने अपने देश से निकल कर मिथिला नगरी में एक साथ राजसभा में पहुँच गये / तो कुंभ राजा को छहों की एक साथ मांग पर गुस्सा आया / अनादर करके सभी को निकाल दिया / दूतों के अपमान से क्रुद्ध बने राजा युद्ध की चढ़ाई करके मिथिला नगरी के बाहर एक साथ पहुँचे / युद्ध में कुंभराजा की हार हुई / नगरोध करके चिंतित बैठे थे। तब मल्लीकुँवरी ने आश्वस्त करते हुए कहा कि अमुक विधि से प्रत्येक राजा को संध्या समय मेरे पास अमुक जगह आने का निमंत्रण भेज दीजियेगा / फिर में संभाल लूँगी / इस प्रकार छहों राजा अलग-अलग मार्गों से अलग-अलग भवनों में(जालगृह, में) आकर बैठ गये / वहीं पर सभी का मल्लिकुँवरी से प्रत्यक्ष मिलन हुआ। . इस प्रकार पूर्व भव की मित्रता आदि के अदृश्य स्नेह निमित्त से एवं प्रत्यक्ष में मोहित भावों से आकृष्ट होकर सातों मित्रों का अनायास एक साथ मिलना हो गया / मल्लीकुमारी ने अवधिज्ञान के साथ जन्म लिया था। अवधिज्ञान के प्रयोग से उन्होंने अपने छहों साथियों की अवस्थिति जान ली थी। भविष्य में घटित होने वाली घटना भी उन्हें विदित हो गई थी। अत: उसके प्रतिकार की तैयारी भी करली थी। तैयारी इस प्रकार की थी- मल्लि कुमारी ने हूबहू अपनी जैसी एक प्रतिमा का निर्माण करवाया / अंदर से वह पोली थी और उसके मस्तक में एक बड़ासा छिद्र था / उस प्रतिमा को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि यह मल्ली नहीं, मल्ली की प्रतिमा है / मल्लिकुमारी जो भोजन-पान करती उसका एक पिंड़ मस्तक के छेद में से प्रतिमा में डाल देती थी। वह भोजन-पानी प्रतिमा के भीतर जाकर सड़ता रहता और उसमें अत्यंत दुर्गंध उत्पन्न होती / किन्तु ढ़क्कन होने से वह दुर्गंध वहीं की वहीं रहती थी / जहाँ प्रतिमा अवस्थित थी, उसके सामने मल्ली ने जालीदार गृहों का भी निर्माण करवाया था। उन गृहों में बैठ कर प्रतिमा को स्पष्ट रूप से / 76 /
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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