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________________ आगम निबंधमाला 19 वें तीर्थंकर मल्लिनाथ भगवान हुए हैं। उनका जीवन चरित्र इस अध्ययन में 2 पूर्वभवों के साथ वर्णित है। पश्चिम महाविदेहक्षेत्र की २४वों सलिलावती विजय में बलराजा का पुत्र महाबल था / बलराजा ने दीक्षा लेकर के आत्म साधना कर मुक्ति प्राप्त करी / फिर महाबल राजा बना / उसके छः बालमित्र राजा थे, वे साथ में खेले बड़े हुए थे / वे सातों आपस में नियमबद्ध थे कि कोई भी विशेष कार्य करेंगे तो सभी साथ में रहेंगे / अतः महाबल राजा को वैराग्य पैदा होने पर सातों ने साथ में दीक्षा ली। उग्र तप भी सभी साथ में करते और अंत में संलेखना संथारा भी साथ में किया। सातों ने जयंत नामक तीसरे अनुत्तर विमान में 32 सागरोपम की स्थिति प्राप्त करी / देवलोक की स्थिति पूर्ण करके छहो मित्र भरतक्षेत्र में अलग-अलग राज्यों के राजा बने और सुखपूर्वक रहने लगे। महाबल. देव भी बत्तीस सागर परिपूर्ण स्थिति पूर्ण कर अवधिज्ञान के साथ मिथिला नगरी में स्त्री पर्याय में उत्पन्न हुआ / माता-पिता ने उसका नाम मल्लि कुमारी रखा। . पूर्वभव के अनुराग से छहो मित्र राजा निमित्त पाकर एक साथ मल्लिकुँवरी के साथ शादी करने आये / मल्लिकुँवरी ने उन छहों को पूर्व भव का कथन करके प्रतिबोध दिया, तब उन्हें भी जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। अपने पूर्व भव का स्मरण, प्रत्यक्ष अनुभव करके वे सभी विरक्त हुए / एक वर्ष वर्षीदान देकर 100 वर्ष की वय में मल्ली अरहंत ने 300 स्त्रियों एवं 300 पुरुषों के साथ सिद्धों को नमस्कार करके सामायिक चारित्र अंगीकार किया। उसी समय उन्हें मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न हुआ / मल्ली अरहंत स्त्री तीर्थंकर होने से साध्वियाँ उनकी आभ्यंतर पर्षदा रूप में थी एवं श्रमण उनके बाह्य पर्षदा रूप में थे। दीक्षा के दिन ही शाम को मल्ली अरहंत को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ / देवों तथा 64 इन्द्रों सहित उपस्थित पर्षदा ने धर्मोपदेश सुना, देवों ने केवलज्ञान महोत्सव किया और नंदीश्वर द्वीप में जाकर अट्ठाई महोत्सव करके अपने देवलोक में गये / कुंभ राजा प्रभावती राणी भी आ गये थे, उपदेश सुना और श्रावक व्रत अंगीकार किये। पूर्व मित्र वे छहों राजा भी पहुँच गये थे, उपदेश सुना और उसी दिन / 74
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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