________________ आगम निबंधमाला : (6) अति वेग से गिरने वाला व्यक्ति भी कभी बच सकता है / अतः योग्य संभाल और सहानुभूति रखना भी कर्तव्य समझना चाहिये। (7) जीवन किसी भी ढर्रे में चल रहा हो तो भी पुनर्चिन्तन एवं नया मोड़ देने की गुंजाइस रखनी चाहिए / आत्मा को हठाग्रह और दुराग्रह में नहीं पहुचाना चाहिये / (8) औषध सेवन भी संयम का एक खतरा है। इससे भी असंयम भाव एवं प्रमाद भाव उत्पन्न हो सकता है। अतः साधक को औषध सेवन की रुचि से निवृत्त होकर तप संयम एवं विवेक युक्त साधना करनी चाहिए / शैलक जैसे चरम शरीरी तपस्वी साधक भी औषध सेवन के निमित्त से संयम में शिथिल बन गये थे। (9) शैलक राजर्षि मध्यम तीर्थंकर के शासन में हुए थे। उनके लिये मासकल्प आदि का नियम पालन आवश्यक नहीं था / इसी कारण ५००श्रमण वहाँ ठहरे थे। कथानक के आधार से अंतिम तीर्थंकर के शासन में नकल नहीं करनी चाहिए, सेवा में जितने श्रमण आवश्यक हो उनके अतिरिक्त छोटे बड़े किसी भी श्रमणों को अकारण कल्प मर्यादा से अधिक नहीं ठहरना चाहिए। (10) शैलक 500 से, शुक संन्यासी 1000 से और थावच्चापुत्र 1000 से दीक्षित हुए / आगमों का अध्ययन पूर्ण होने के बाद गुरु ने उन्हें साथ में दीक्षितों को शिष्य रूप में प्रदान किया था / दीक्षा के प्रथम दिन से वे साथ में दीक्षित संत उनके शिष्य नहीं कहलाते है, किंतु बाद में गुरु के देने पर ही उनके शिष्य कहलाते हैं / तभी वे उनको साथ लेकर स्वतंत्र विचरण करने लगते हैं ।आज तो कोई दीक्षा लेते ही गुरु बन जाता है यह अनागमिक तरीका है, जिसे इस अध्ययन के मूलपाठ से भलीभाँति समझने की आवश्यकता है कि आगम अध्ययन का कोर्स पूर्ण कर बहुश्रुत योग्यता संपन्न होने पर ही शिष्य किये जाने चाहिये / निबंध-२२ मल्लीभगवती के 3 भवों का अद्भुत वर्णन इस अवसर्पिणी काल में क्रमश: 24 तीर्थंकर हुए हैं। उनमें / 73