________________ आगम निबंधमाला समुदाय वाले 'अरिहंत भगवान की मूर्ति' भी कहते हैं किन्तु वह टोकाकार के अर्थ से विपरीत है तथा पूर्वापर सूत्रों से विरुद्ध भी है। क्यों कि टीकाकार ने यहाँ अंतःकरण शब्द का प्रयोग किया है वह मूर्ति में नहीं हो सकता। सूत्र में सम्यक् भावित चैत्य का अभाव होने पर अरिहंत सिद्ध की साक्षी के लिए गाँव आदि के बाहर जाने का कहा है। यदि यहाँ चैत्य का अर्थ मन्दिर होता है तो मन्दिर में ही अरिहंत सिद्ध की साक्षी से आलोचना करने का कथन होता, गाँव के बाहर जाने के अलग विकल्प देने की आवश्यकता ही नहीं होती अर्थात् इस सूत्र में चेइय शब्द के वाक्य के साथ अरिहंत सिद्ध नहीं कहकर उसे आगे के विकल्प से गाँव के बाहर जाने के कथन वाले सूत्र में कहा है और वहाँ अरिहंत सिद्ध के विकल्प में चेइये शब्द भी नहीं कहा है। अतः 'चेइय' शब्द का प्रस्तुत प्रकरण में सम्यग् भावित अंत:करण वाला 'ज्ञानी', सम्यग् दृष्टि अथवा समझदार पुरुष ऐसा अर्थ करना ही उपयुक्त है। समवायांग सूत्र में तीर्थंकरों को जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान उत्पन्न होता है उसे 'चैत्य वृक्ष'अर्थात् ज्ञानोत्पति स्थल का वृक्ष कहा है। तात्पर्य यह है कि मौलिक गणधर रचित आगमों में एवं विशाल शब्द कोशों में भी 'चैत्य' शब्द का अर्थ 'ज्ञान' सूचित्त किया गया है। प्रस्तुत प्रकरण में भी 'ज्ञानी' सम्यग् दृष्टि अर्थ ही अपेक्षित हैं एवं उचित है। उससे जबरन मंदिर मूर्ति अर्थ कर अपने दुराग्रह का पोषण करके संतोष मानना अनुपयुक्त है। निबंध-७० श्रावकों को जानने योग्य 25 क्रियाएँ कायिकी आदि पाँच क्रिया :1. कायिकी- शरीर के आभ्यन्तर सूक्ष्म संचार से, 2. अधिकरणिकी- शरीर के बाह्य सूक्ष्म संचार से, 3. प्रादोषिकी- सूक्ष्म कषायों के अस्तित्व से, ... 4. परितापनिकी- शरीर से कष्ट पहुँचाने पर, . / 238