________________ आगम निबंधमाला मार्ग होते हैं, जितने आशयों से वस्तु का कथन किया जा सकता है उतने ही नय होते हैं अर्थात् प्रत्येक वस्तु में अनंतधर्म(गुण)रहे हुए होते हैं, उनमें से एक समय में अपेक्षित किसी एक धर्म का कथन किया जाता है। उस एक धर्म के कहने के उस अपेक्षा वचन को "नय" कहते हैं / अतः अनंत धर्मात्मक वस्तुओं की अपेक्षा नयों की संख्या भी अनंत है। फिर भी किसी वस्तु को सुगमता से समझने के लिये उन अनेक भेदों को संग्रहित कर सीमित भेदों में समाविष्ट करके कथन करना भी आवश्यक होता है। अतः उक्त अनेकों भेदों का समावेश करके अनुयोगद्वार सूत्र में सात नयों का कथन किया गया है। इसके अतिरिक्त संक्षिप्त अपेक्षा से नय के दो-दो भेद भी किये जाते हैं। यथा- द्रव्यार्थिक नय और पर्यायार्थिक नय अथवा निश्चय नय और व्यवहार नय अथवा ज्ञान नय एवं क्रिया नय / अति संक्षेप विधि से उन सात भेदों को इन दो-दो में समाविष्ट करके भी कथन कर दिया जाता है / सूत्रोक्त सात नय इस प्रकार है- 1. नैगम नय 2. संग्रह नय 3. व्यवहार नय 4. ऋजु सूत्र नय 5. शब्द नय 6. समभिरूढ नय 7. एवंभूत नय / .. नैगमनय-इस नय में वस्तु के सामान्य और विशेष उभयधर्मों का अलग अलग अस्तित्व स्वीकार किया जाता है अर्थात् किसी वस्तु में अंशमात्र भी अपना वाच्य गुण हो तो भी उसे सत्य रूप में स्वीकार किया जाता है। भूत भविष्य वर्तमान काल को भी अलग-अलग स्वीकार किया जाता है अर्थात् जो हो गया है, हो रहा है, होने वाला है उसे भी सत्य रूप में यह नय स्वीकार करता है। न+एक+गम नैगमजिसके विचार करने का केवल एक ही प्रकार नहीं है, अनेक प्रकारों से वस्तु के धर्मों का अलग-अलग अस्तित्व स्वीकार करने वाला यह "नय" है। तीर्थंकर आदि महापुरुषों का जो जन्म दिन स्वीकार कर मनाया जाता है, वह भी नैगम नय से ही स्वीकार किया जाता है। यह नय चारों निक्षेपों को स्वीकार करता है / अर्थात् अपने अपने अलग-अलग महत्व रूप में; न कि सब निक्षेपों को समान रूप में। तात्पर्य यह है कि चारों निक्षेप को अपनी अपेक्षा में सत्य स्वीकारता है। किसी को भी नकारता नहीं है / [224