________________ आगम निबंधमाला ज्ञेय है, उससे वस्तु की पूर्ति नहीं होती है। तीसरे द्रव्य निक्षेप में उस वस्तु का कुछ अंश अस्तित्व में होता है किन्तु उससे भी उस वस्तु की पूर्ण प्रयोजनसिद्धि नहीं होती है। भावनिक्षेप में कहा गया पदार्थ वास्तव में परिपूर्ण अस्तित्व वाला होता है, उसी से उस पदार्थ संबंधी प्रयोजन की सिद्धि होती है। यथा- (1) किसी का नाम घेवर या रोटी रख दिया है तो उससे क्षुधा पूर्ति आदि नहीं होती (2) किसी वस्तु में घेवर या रोटी जैसा आकार कल्पित कर उसे "यह घेवर है" या "यह रोटी है" ऐसी कल्पना-स्थापना कर दी तो भी क्षुधा शांति आदि उससे भी संभव नहीं है। (3) जो रोटी या घेवर बनने वाला गेहुँ का आटा या मैदा पड़ा है अथवा जो एक रोटी या घेवर एक किलो पानी में घोल कर विनष्ट कर दिये गये हैं उस आटे से और पानी के घोल से भी रोटी या घेवरं जैसी तृप्ति नहीं हो सकती है (4) शुद्ध परिपूर्ण बनी हुई रोटी, घेवर ही वास्तविक रोटी एवं घेवर है। उसी से क्षुधा शांति एवं तृप्ति संभव है। इसलिये चारों निक्षेप में कहे गये सभी पदार्थ को एक सरीखा करने की नासमझ नहीं करके, भाव निक्षेप का महत्व अलग ही समझना चाहिये एवं द्रव्य निक्षेप का किंचित अंश में महत्व होता है और नाम स्थापना निक्षेप प्रायः आरोपित कल्पित ही होते हैं। उन्हें भाव निक्षेप के तुल्य नहीं करना चाहिये / इससे यह स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति या महान आत्मा का फोटू, तस्वीर, मूर्ति आदि में उस गुणवान व्यक्ति के योग्य वस्त्राभूषण, स्नान, श्रृंगार, आहार एव सत्कार सम्मान आदि का व्यवहार करना, निक्षेप की अवहेलना एवं दुरूपयोग करना ही समझना चाहिये तथा ऐसा करने की प्रेरणा या प्ररूपण करना भी सूत्र विरुद्ध प्ररूपण करना समझना चाहिये। निबंध-६७ सात नयों का स्वरूप एवं दृष्टांत वस्तु को विभिन्न दृष्टियों से समझने के लिये या उसके तह तक प्रवेश करने के लिये उस वस्तु की नय द्वारा विचारणा की जाती है। अपेक्षा से नय के विविध प्रकार होते हैं अथवा तो जितने वचन व / 223