________________ आगम निबंधमाला शलाका पल्य भरना- मान लो सरसों के दानों का एक महा ढेर है उसमें से अनवस्थित पल्य में सरसों के दाने सिखा पर्यन्त भर कर असत्कल्पना से कोई देव पल्य को उठाकर चले और एक एक दाना एक-एक द्वीप समुद्र में डालें। जहाँ अनवस्थित पल्य खाली हो जावे, उस द्वीप समुद्र जितना लम्बा चौड़ा अनवस्थित पल्य बनाया जाय और उसे भरकर फिर वहाँ से आगे के द्वीप समुद्रों में एक-एक सरसों का दाना डालें जहाँ वह पल्य खाली हो जाय, वहाँ उस द्वीप समुद्र जितना लम्बा चौड़ा अनवस्थित पल्य को बना लेना। प्रत्येक अनवस्थित पल्यं खाली होने की साक्षी रूप एक दाना सरसों के ढेर में से 'शलाका पल्य' में डालना। इसी क्रम से अनवस्थित पल्य बनाते रहना और आगे आगे के द्वीप समद्रों में एक-एक दाना डालते रहना। अनवस्थित पल्य खाली होवे ज्यों ही एक दाना 'शलाका पल्य' में डालते रहना। . प्रतिशलाका पल्य भरना- यो साक्षी रूप एक-एक दाना डालते डालते जहाँ शलाका पल्य पूरा भर जाय वहाँ अनवस्थित पल्य अंतिम द्वीप समुद्र जितना लम्बा चौड़ा बनाकर सरसों के दानों से भर कर रख देना। फिर भरे हुए शलाका पल्य को उठाकर आगे के द्वीप समुद्रों में एकएक दाना डाल कर खाली करना और अन्त में साक्षी रूप एक दाना ढेर में से प्रतिशलाका पल्य में डालना / 'शलाका पल्य' को खाली करके रख देना। अब पुनः उस भरे हुए अनवस्थित पल्य को उठाना और आगे के नये द्वीप समुद्र से दाना डालना प्रारंभ करना। खाली होने पर एक दाना 'शलाका पल्य' में डालना फिर उस द्वीप समुद्र जितना बड़ा अनवस्थित पल्य बनाना, भरना और खाली करना और एक दाना 'शलाका पल्य' में डालना। यों करते-करते जब शलाका पल्य भर जाएगा तब उसे भी अगले द्वीप समुद्रों में एक-एक दाना डाल कर खाली करना और साक्षी रूप एक दाना फिर 'प्रति शलाका पल्य' में डालना। इसी विधि से करते हुए एक समय 'प्रतिशलाका पल्य' भी भर जाएगा। महाशलाका पल्य भरना- संपूर्ण भरे उस 'प्रतिशलाका षल्य' को उठाकर आगे के द्वीप समुद्रों में एक-एक दाना डालना और खाली होने पर उसे खाली रख देना एक दाना उसके साक्षी रुप 'महाशलाका 214]