________________ आगम निबंधमाला स्वच्छ स्फटिक से बने पादपीठ युक्त सिंहासन और धर्म ध्वज, ये उनक आगे चल रहे थे ।इस प्रकार वे श्रमण भगवान महावीर 14000 साधु, 36000 साध्वियों के परिवार से युक्त आगे से आगे चलते हुए सुखशांति पूर्वक एक गाँव से दूसरे गाँव विहार करते हुए चंपानगर के बाहरी उपनगर में पहुँचे / निबंध-६२ संख्यात असंख्यात अनंत की भेद युक्त व्याख्या श्री अनुयोगद्वार सूत्र में इनका स्वरूप इस प्रकार बताया गया हैगणणा संख्या- इसके तीन भेद है- 1. संख्यात, 2. असंख्यात, 3. अनंत / संख्यात के तीन भेदं है- 1. जघन्य, 2. मध्यम, 3. उत्कृष्ट / असंख्यात के 9. भेद है- (1-3) जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट परित्त असंख्यात (4-6) जघन्य मध्यम उत्कृष्ट-युक्तअसंख्यात (7-9) जघन्य मध्यम उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात / अनंत के आठ भेद-(१-३) जघन्य मध्यम उत्कृष्ट परित्तानंत (4-6) जघन्य मध्यम उत्कृष्ट युक्तानंत (7-8) जघन्य और मध्यम अनंतानंत। संख्याता- जघन्य संख्याता दो का अंक है। मध्य में सभी संख्याएँ है अर्थात् शीर्ष प्रहेलिका तक तो है ही, आगे भी असत्कल्पना से उपमा द्वारा बताई जाने वाली समस्त संख्या भी मध्यम संख्यात है। अर्थात् जब तक उत्कृष्ट संख्यात की संख्या न आवे वहाँ तक सब मध्यम संख्यात है। उत्कृष्ट संख्यात को उपमा द्वारा समझाया गया है, वह इस प्रकार हैउत्कृष्ट संख्याता- उत्कृष्ट संख्याता को उपमा द्वारा समझाने के लिये चार पल्य की कल्पना की गई है। यथा- 1. अनवस्थित पल्य 2. शलाका पल्य 3. प्रतिशलाका पल्य 4. महाशलाका पल्य। चारों पल्य की लम्बाई चौड़ाई जम्बूद्वीप प्रमाण होती है। ऊँचाई 1008-1/2 योजन (एक हजार साढ़े आठ योजन)होती है / तीन पल्य माप में स्थित रहते हैं / प्रथम अनवस्थित पल्य की लम्बाई चौड़ाई बदलती है, ऊँचाई वही रहती है। / 213