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________________ आगम निबंधमाला में पाये जाते हैं। इस आरे के 75 वर्ष साढ़े आठ मास अवशेष रहने पर २४वें तीर्थंकर का जन्म होता है एवं 3 वर्ष साढ़े आठ महिने शेष रहने पर २४वें तीर्थंकर निर्वाण को प्राप्त करते हैं। यह आरा एक क्रोड़ाक्रोड़ सागरोपम में 42000 वर्ष कम का होता है। २४वें तीर्थंकर के मोक्ष जाने के 3 वर्ष साढ़े आठ महीने बीतने पर पाँचवाँ दुःखमी आरा प्रारम्भ हो जाता है। इन आरों के नाम से सुख दुःख का स्वभाव भी स्पष्ट होता है। पहला दूसरा आरा सुखमय होता है, दुःख की कोई गिनती वहाँ नहीं है। तीसरे में अल्प दुःख है अर्थात् अंत में मिश्रणकाल और कर्मभूमिज काल में दुःख, क्लेश, कषाय, रोग, चिन्ता आदि होते हैं। चौथे आरे में सुख और दुःख दोनों हैं अर्थात् कई मनुष्य संपूर्ण जीवनभर मानुषिक सुख भोगते हैं। पुण्य से प्राप्त धनराशि में ही संतुष्ट रहते हैं और फिर दीक्षा लेकर आत्म कल्याण करते हैं। अधिक मानव संसार प्रपंच, जीवन व्यवस्था, कषाय क्लेश में पड़े रहते हैं। उसके अनंतर पाँचवाँ आरा दुःखमय है, इस काल में सुख की कोई गिनती नहीं है, मात्र दुःख चौतरफ घेरे रहता है। सुखी दिखने वाले भी दिखने मात्र के होते हैं। वास्तव में वे भी पग-पग पर तन-मन-धन-जन के दुःखों से व्याप्त होते हैं। पूर्व की अपेक्षा इस पाँचवें आरे में पुद्गल स्वभाव में अनंतगुणी हानि होती है। मनुष्यों की संख्या अधिक होती है। उपभोग परिभोग की सामग्री हीनाधिक होती रहती है। दुष्काल दुर्भिक्ष होते रहते हैं। रोग, शोक, बुढ़ापा, मरीमारी, जन-संहार, वैर-विरोध, युद्ध-संग्राम होते रहते हैं / जनस्वभाव भी क्रमशः अनैतिक हिंसक क्रूर बनता जाता है। राजा. नेता भी प्रायः अनैतिक एवं कर्तव्यच्युत अधिक होते हैं। प्रजा के पालन की अपेक्षा शोषण अधिक करते हैं / चोर डाकू लुटेरे दुर्व्यसनी आदि लोग ज्यादा होते हैं, धार्मिक स्वभाव के लोग कम होते हैं। धर्म के नाम से ढ़ोंग ठगाई करने वाले कई होते हैं। इस आरे में जन्मने वाले चारों गति में जाते हैं, मोक्ष गति में नहीं जाते हैं / 6 संघयण 6 संस्थान वाले होते है एवं इस आरे के प्रारम्भ में 16 और अंत में 8 पसलिये मानव शरीर में होती है। अवगाहना अंत में उत्कृष्ट दो हाथ और प्रारम्भ में मध्य में अनेक हाथ होती है। | 199
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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