SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला (7) अबाधित बल में वासुदेव के समान होते हैं / (8) राजेश्वर्य में चक्रवर्ती के समान वे श्रमणों में ऐश्वर्यशाली होते हैं / (9) देवताओं में शक्रेन्द्र के समान प्रधान होते हैं। (10) अज्ञानांधकार नाश करने में सूर्य के समान तेजस्वी होते हैं। (11) ताराओं में प्रधान परिपूर्ण चन्द्र के समान सौम्य एवं उद्योतकर होते हैं। (12) परिपूर्ण कोठारों के समान ज्ञान निधि से संपन्न होते हैं / (13) जम्बू सुदर्शन वृक्ष के समान श्रेष्ठ होते हैं। (14) नदियों में सीता नदी(सबसे विशाल नदी) के समान विशाल। (15) पर्वत में ऊँचे मंदर मेरु पर्वत के समान / (16) समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र के समान वे बहुश्रुत विशाल एवं गंभीर होते हैं / .. ऐसे श्रेष्ठ गुण एवं उपमाओं से संपन्न बहुश्रुत भगवान संघ में श्रुत प्रदानकर्ता, शंका-समाधान कर्ता एवं चर्चा वार्ता में सर्वत्र अजेय होते हैं / अतः मोक्ष के इच्छुक संयम पथिक प्रत्येक साधक को संयम लेकर प्रारंभ से ही लक्ष्य रखकर आगम अनुसार यथाक्रम से श्रुत अध्ययन करने में पुरुषार्थशील होना चाहिये ताकि यथासमय श्रुतज्ञान संपन्न शुश्रुत एवं उक्त उपामाओं संपन्न बन सके / विशेष में प्राप्त श्रुत से "अहं का पोषण" आदि दुरुपयोग कभी भी नहीं करके स्व-पर की कल्याण साधना करनी चाहिये तथा जिन शासन की प्रभावना में अपनी ज्ञान शकित का सदुपयोग करना चाहिये / निबंध-५. चतुर्विध मोक्षमार्ग ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप रूप चतुर्विधि धर्म से संयुक्त यह मोक्ष मार्ग है / इन चारों की युगपत् आराधना करना ही मोक्ष प्राप्ति का राजमार्ग है। उत्तराध्ययन सूत्र के २८वें अध्ययन में इन चारों का विश्लेषण किया गया है। इसलिये अध्ययन का नाम भी मोक्षमार्ग रखा गया है। .
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy