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________________ आगम निबंधमाला (अर्धमागधी) में धर्मोपदेश / (23) जीवों की अपनी-अपनी भाषा में परिणमन / (24) देव, मनुष्य, जानवर सभी वैर भूल कर साथ में बैठकर धर्मश्रवण / (25) अन्यतीर्थिकों द्वारा वंदन / (२६)उनका निरुत्तर होना / (27) 25 योजन तक उपद्रव शांति / (28) मरी-मारी आदि बिमारी नहीं होती। (29) स्वचक्र का भय नहीं रहे। (30) परचक्र का भय नहीं रहे। (31) अतिवृष्टि नहीं होती। (32) अनावृष्टि नहीं होती। (33) दुर्भिक्ष-दुष्काल नहीं होता। (34) पूर्वोत्पन्न व्याधि उपद्रव की शांति / पेंतीस वचनातिशय :- (1) व्याकरण नियम युक्त / (2) उच्चस्वर। (3) ग्रामीणता गामठीपन रहित / (4) गंभीर घोष / (5) प्रतिध्वनित वचन / (6.) चतुराई युक्त / (7) राग-रागिणी या लय-प्रवाह युक्त। (8) महान अर्थवाले वचन / (9) पूर्वापर अविरोधी / (10) शिष्ट वचन / . (11) असंदिग्ध / (12) दूषण निवारक / (13) हृदयग्राही / (14) अवसरोचित / (15) विवक्षित तत्व के अनुरूप। (16) निरर्थक विस्तार रहित / (17) परस्पर उपेक्षित वाक्य / (18) शालीनता सूचक / (19) मिष्ट वचन / (20) मर्म रहित / (21) अर्थ-धर्म के अनुकूल / (22) उदारता युक्त / (23) परनिंदा स्वप्रशंसा रहित / (24) प्रशंसनीय वचन / (25) व्याकरण दोषों से रहित / (26) कोतुहल युक्त आकर्षण वाले। (27) अद्भुत वचन / (28) धाराप्रवाही वचन / (29) मन के विक्षेप, रोष, भय आदि से रहित / (30) अनेक प्रकार के कथन करने वाले / (31) विशेष वचन (32) साकार (33) साहसपूर्ण (34) खेद रहित . (35) विवक्षित अर्थ की सिद्धि करने वाले। पुरुषों की 72 कलाएँ : प्राचीन काल में राजकुमार आदि विशिष्ट पुण्यशाली बालक गुरुकुल में रहकर जिन विषयों में पारंगत बनते थे, उन्हें आगमों में 72 कला के रूप में सूचित किया गया है। इन कलाओं का वर्णन आगमों में अनेक जगह पुण्यशाली पुरुषों के सांसारिक गुण ऋद्धि योग्यता के रूप में किया जाता है अर्थात् ये लौकिक अध्ययन रूप है / लौकिक अध्ययन की पूर्णता में सामाजिकता, नैतिकता, धर्मप्रियता, शूरवीरता आदि गुणों का स्वत: समावेश हो जाता है / जिससे इन 72 कलाओं / 180
SR No.004413
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages256
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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