________________ आगम निबंधमाला राज़ा- उस दुष्ट पापी को मैं तत्काल दंड़ देकर अर्थात् तलवार से टुकड़े टुकड़े करके परलोक पहुँचा दूंगा? केशी- यदि वह कहे कि राजन् ! मुझे एक दो घंटा का समय दो, ताकि मैं घर वालों से मिलकर तो आ जाऊँ, उन्हें अच्छी शिक्षा तो दे दूँ, तो तुम उसे छोड़ोगे? राजा- नहीं ! उसे इतना बोलने का समय भी नहीं दूंगा अथवा वह ऐसा बोलने की हिम्मत भी नहीं कर सकेगा और कह भी देगा तो मैं उस दुष्ट को एक क्षण मात्र की भी छुट्टी नहीं दूंगा। केशी- राजन् ! यही अवस्था नरक के जीवों की एवं तुम्हारे दादा की होगी कि वे अपने दुःख के आगे यहाँ आने का सोच भी नहीं सकते और यदि आना चाहे तो भी नहीं आ सकते। इसलिये तुम्हारा दादा तुम्हें कहने नहीं आ सकता। अतः तुम्हारी आशा रखना और उसी के बल पर जीव शरीर को एक मानना ठीक नहीं है। राजा- भंते ! मेरी दादी तो बहुत ही धर्मात्मा थी। वह आपके हिसाब से अवश्य स्वर्ग में गई होगी। उसे तो पाप फल का कोई प्रतिबंध नहीं है। वह तो आकर मुझे कह सकती कि हे पौत्र ! देख मैं धर्म करके स्वर्ग में गई हूँ। तूं पाप कार्य मत कर, आत्मा और शरीर अलगअलग है ऐसा मान कर धर्म कार्य कर, प्रजा का सही विधि से पालन कर, इत्यादि / किन्तु उसके द्वारा भी कभी सावधान करने का प्रसंग नहीं आया, जब कि मुझ पर तो उसका भी अत्यंत स्नेह था। अतः परलोक देवलोक और आत्मा कुछ भी नहीं है, ऐसी मेरी मान्यता है / केशी- राजन् ! जब तुम स्नान आदि कर पूजा की सामग्री एवं झारी आदि लेकर मंदिर में जा रहे हो और मार्ग में कोई पुरुष अशुचि(मल)से भरे शौचगृह के पास बैठ कर तुम्हें बुलावे कि इधर आओ, थोड़ी देर बैठो, तो तुम वहाँ क्षण मात्र के लिए भी नहीं जाओगे। उसी प्रकार हे राजन् ! मनुष्य लोक में 500 योजन उपर तक अशुचि आदि की दुर्गंध जाती रहती है। इस कारण देव-देवी यहाँ नहीं आ सकते। इसलिये तुम्हारी दादी भी तुम्हें संबोधन करने नहीं आ सकती। . देवलोक से नहीं आने में अशुचि एवं दुर्गंध-के अतिरिक्त भी कई कारण है, यथा- वहाँ जाने के बाद यहाँ का प्रेम समाप्त हो जाता | 13