________________ आगम निबंधमाला वैक्रिय शक्ति से सुंदर नाट्य मंडप की रचना की एवं स्वतः भगवान की आज्ञा लेकर प्रणाम करके अपने सिंहासन पर भगवान के सामने मुख रखकर बैठ गया। नाट्यविधि :- फिर नाट्यविधि का प्रारंभ करते हुए अपनी एक भुजा में से 108 देवकुमार और दूसरी भुजा से 108 देवकुमारियाँ निकाली जो वस्त्राभूषणों से सुसज्जित थी। 49 प्रकार के 108 वादकों की विकुर्वणा की। फिर उन देवकुमारों को आदेश दिया कि तुम भगवान को वंदन नमस्कार करके गौतमादि अणगारों को 32 प्रकार के नाटक दिखाओ। देवकुमारों ने आज्ञानुसार नृत्यगान युक्त नाट्य विधियों का क्रमशः प्रदर्शन किया। नाट्य विषय :- उन नाट्य विधियों के मुख्य विषय इस प्रकार थे(१) आठ प्रकार के मंगल द्रव्यों संबंधी (2) पत्र, पुष्प, लता संबंधी (3) विविध चित्रों संबंधी (4) पंक्तियों आवलिकाओ संबंधी (5) चंद्रोदय सूर्योदय की रचना संबंधी (6) उनके आगमन संबंधी (7) उनके अस्त होने संबंधी (8) इनके मंडल या विमान संबंधी (9) हाथी, घोड़ा आदि के गति संबंधी (10) समुद्र और नगर संबंधी (11) पुष्करणी संबंधी (12) ककार खकार गकार इत्यादि आद्य अक्षर संबंधी (13) उछलने, कूदने, हर्ष, भय, संभ्रांत, संकोच, विस्तारमय होने संबंधी। अंत में भगवान महावीर स्वामी के भव से पूर्व का देव भव, वहाँ से च्यवन, संहरण, जन्म, बाल्यकाल, यौवन काल, भोगमय जीवन, वैराग्य, दीक्षा, तप संयममय छद्मस्थ जीवन, केवल्य-प्राप्ति, तीर्थ प्रवर्तन और निर्वाणप्राप्ति संबंधी समस्त वर्णन युक्त नाट्यविधि का प्रदर्शन किया / नाट्यविधि का उपसंहार करते हुए मौलिक चार प्रकार के वादिंत्र बजाये, चार प्रकार के गीत गाये, चार प्रकार के नृत्य दिखाये और चार प्रकार के अभिनय-नाटक दिखाये। फिर श्रमण भगवान महावीर स्वामी को विधियुक्त वंदन नमस्कार करके सूर्याभदेव के पास में आये सूर्याभदेव ने अपनी समस्त विकुर्वणा को समेट लिया एवं भगवान को वंदन नमस्कार करते हुए अपने विमान में आरूढ़ होकर देवलोक में चला गया / / 125