SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला अलग विकल्प है। इसके अतिरिक्त कुछ उपकरण किसी क्षेत्र, काल में संयम के लिए या शारिरिक परिस्थिति से आवश्यक होने पर उस परिस्थिति तक व्यक्तिगत रखने की सकारण अनुज्ञा होती है / ध्रुव आज्ञा के उपकरण- रजोहरण, मुंहपत्ति, चद्दर, चोलपट्टा, पात्र, आसन व प्रमाणनिका (गोच्छग) आदि / . सकारण रखने के उपकरण- दंडा, लाठी, अवलेखनिका, सूई, कैची, नखछेदन, कर्णशोधनक, पादपोंछनक, चर्मकोश, चर्मछेदनक आदि के नाम आगमों में आये हैं / क्षेत्र, काल व शरीर के प्रसंग से डायरियाँ, चश्मा, पेन्सिल, रबर, आगम की एवं स्तवनादि की पुस्तके, पेन, घड़ी आदि रखने की प्रवत्तियाँ भी विभिन्न रूप से चल रही है। आगमकार का आशय यह स्पष्ट होता है कि १.अत्यन्त आवश्यकता के बिना उपधि संग्रह नहीं बढ़ाना चाहिये / 2. आवश्यकता होने पर भी कम से कम रखा जाय यह विवेक होना जरूरी है / 3. संयम जीवन में सादगी की वत्ति का लक्ष्य रहना भी जरूरी है / 4. मौलिक नियम रूप अहिंसा आदि महाव्रत का और एषणा समिति आदि का पालन भी अवश्य होना चाहिये / उपरोक्त निर्देशों का ध्यान रखते हुए धातु या बिना धातु के आवश्यक कोई भी उपकरण रखे जा सकते हैं / किन्तु गच्छ नायक की विशिष्ट आज्ञा प्राप्त किये बिना कोई भी सकारण उपधि ग्रहण नहीं की जा सकती है। सूई, कैंची या लिखित-प्रकाशित आगम आदि बहुत जगह सुलभ होने से यथाशक्य नहीं रखने चाहिए। आवश्यकता एवं दुर्लभता के विचार पूर्वक ही रखे जा सकते है / पात्र, वस्त्र व दंड के लिये आगम में जातियों का स्पष्ट निर्देश है अत: उन जाति में से ही कोई ग्रहण करना चाहिए अन्य जाति का नहीं / शेष कर्णशोधनिका, चश्मा आदि शरीर के आवश्यक उपकरण अथवा पुस्तक, पेन आदि ज्ञानसंयम के आवश्यक उपकरण, किसी भी जाति का लेना हो तो उपरोक्त विवेक रखना चाहिए। पात्र के लिये निषिद्ध जातियों को भ्रम वश अन्य उपकरण में - --- - - - --
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy