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________________ आगम निबंधमाला शारीरिक परिस्थिति के कारण अधिक पात्र रखने की अनुज्ञा है, कारण दूर होने पर वह पात्र छोड़ा जा सकता है / तथा निशीथ सत्र उद्देशक पांच से पात्र का इस तरह छोड़ना और वस्त्र का इस तरह नहीं छोड़ना फलित होता है / अत: तीनों तरह के पात्र आवश्यक होने पर छोड़ना आगम विपरीत आचरण नहीं कहा जा सकता। इसीलिए यह शिथिलाचर भी नहीं है। प्रश्न 7. लोहे पीतल आदि के कुण्डे आदि व प्लास्टिक के पात्र तथा बाल्टियाँ गिलास लोटे आदि रखना आगम विपरीत आचरण है ? शिथिलाचार है ? उत्तर- आचारांग सूत्र में पात्र ग्रहण के विषय में तीन जाति का निर्देश है / ठाणांग सूत्र के तीसरे ठाणे में तीन की संख्या पूर्वक पात्र की जाति का कथन हुआ है / निशीथ सूत्र उद्देशा 1-2-5-14 आदि में तीन जाति के नाम पूर्वक पात्र विषयक कथन है / बहत्कल्प आदि अन्य सूत्रों में भी तीन जाति के कथन पूर्वक विषय वर्णन है / निशीथ उद्देशा- 11 में लोहा, पीतल आदि व कांच, पत्थर कपड़ा, दांत, सींग, चर्म आदि के पात्र रखने या उपयोग में लेने पर गुरू चौमासी प्रायश्चित्त आने का कथन है / इत्यादि आगम पाठों के स्वाध्यायी को यह समझना कठिन नहीं हो सकता कि "तीन जाति के पात्र ही साधु को रखना एवं काम में लेना" ऐसा स्पष्ट आगम आशय है / अत: लोहा, पीतल तथा प्लास्टीक आदि कोई भी जाति के पात्र (तीन जाति के सिवाय होने से) रखना या काम में लेना आगम विपरीत आचरण समझना चाहिए। परिस्थितिवश तथा अल्पकालीन या प्रायश्चित्त लेने के संकल्प से युक्त न हो तो शिथिलाचार समझना चाहिये / प्रश्न 8. धातु युक्त चश्मा, पेन आदि तथा घड़ी आदि रखना आगम विपरीत आचरण है ? ये शिथिलाचार है ? .. उत्तर- संयम तथा शरीर के आवश्यक उपकरण ही रखना साधु को कल्पता है / कुछ उपकरण सभी साधुओं को रखने की ध्रुव आज्ञा होती है। जिसमें रजोहरण व मुँहपति रखना तो नियमा है और शेष का रखना नियमा नहीं है अर्थात् जिनकल्पी स्थविर कल्पी के लिए अलग | 95 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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