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________________ आगम निबंधमाला समझ लेने पर तो काँच आदि के चश्में व दांत आदि के कर्णशोधनक आदि को रखना भी निषिद्ध होगा, जो किसी को भी मान्य नहीं हो सकता। अत: पात्र के निर्देश को पात्र तक ही सीमित रखना चाहिए। प्रश्न 9. घड़ी तो रात दिन चलती है व चाबी भरना होता है जिससे वायु काय की विराधना होती है / अत: घड़ी रखना तो आगम विपरीत समझना ही चाहिए ? उत्तर- वायु काय की विराधना के सम्बन्ध में यह समझें कि फूंकने व वींजने के सिवाय कोई भी प्रवत्ति यतना पूर्वक की जा सकती है। यह साधु का आचार दशवैकालिक सूत्र में निर्दिष्ट है / साधु सैंकड़ों मील चलता है, चद्दर-चोलपट्टा आदि हिलते हैं, हाथ-पाँव हिलते हैं, नाड़ी स्पंदन आदि आभ्यंतर क्रिया होती है। सैंकड़ों पष्ट लिखने की प्रवृत्ति भी साधु कर सकता है, घंटों तक व्याख्यान स्तवन आदि कर सकता है इनमें मुंह और जीभ कंठ का स्पंदन होता है। पानी कपड़ा हाथ हिलने रूप कपड़े धोने की प्रवति साधु कर सकता है, इत्यादि कार्यों की अपेक्षा, घड़ी चलने आदि की अयतना ज्यादा नहीं समझनी चाहिए / अत: जिस तरह-स्मरण शक्ति की मंदता के कारण से ज्ञान के अनेक उपकरण व उनका वजन बढ़ा है / उसी तरह सूर्य व नक्षत्रों से समय-ज्ञान करना न आने से या शहरी मकान बिजली आदि के कारण, काल ज्ञान होना संभव न रहने से व विहार आदि में क्षेत्र विशेषों में घड़ी की अनुकूलता न होने से, संयम प्रवृत्ति व आगम स्वाध्याय आदि कार्यों में कालज्ञान आवश्यक होने से, घड़ी रखना भी उपरोक्त उपकरणों के समान आपवादिक समझ लेना चाहिए / शिथिलाचार सम्बन्धी निर्णय तो पूर्व के उत्तरों के समान समझना चाहिए अर्थात अत्यन्त आवश्यकता के बिना उपकरण संग्रह बढाना शिथिलाचार है एवं गीतार्थ की आज्ञा से सकारण कोई भी उपकरण रखना शिथिलाचार नहीं है / प्रश्न 10. लोहे-पत्थर आदि के साधन से खाद्य पदार्थ या औषध आदि को कूटना या पीसना आदि कार्य करना साधु को कल्पता है ? [ 97
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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