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________________ आगम निबंधमाला उत्तर- किसी भी पूर्वाचार्यों के बनाये नियमों के पालन की अनावश्यकता का निर्णय साधारण ज्ञानी या सामान्य साधु के अधिकार का विषय नहीं समझना चाहिए। जो साधु गीतार्थ हो, आचारांग निशीथ को अर्थसहित कंठस्थ धारण करने वाला हो, अन्य आचार शास्त्रों के अध्ययन से निष्णात हो, अनेक आगम स्थलों का सम्बन्धित विचार कर समन्वय कर शुद्ध शास्त्र आशय को सहज समझ सकता हो तथा अनेक शास्त्रों का चिंतनपूर्वक अनेक बार अध्ययन या अध्यापन किया हो अर्थात् बहुश्रुत हो, संयम आराधन की रूचि वाला हो और आगम के प्रति श्रद्धा व निष्ठा रखने वाला हो, वही क्षेत्र काल आदि का अवसर देखकर आगम को आगे रखते हुए एवं उन्हें ही सर्वोपरि मानते हुए, उन्हीं के आधार से व्यक्तिगत या स्वगच्छ के लिये उन पूर्वाचार्यों के बनाये नियमों के अपालन का निर्णय ले सकता है एवं उन्हें आगम से अतिरिक्त या अनावश्यक होने का निर्णय दे सकता है, क्यों कि जिन शासन में व्यक्ति महत्व को मुख्य नहीं करके निर्ग्रन्थ प्रवचन अर्थात् आगम की मुख्यता रखकर संयम में विचरण करना बताया गया है यथा- निग्गंथं पावयण पुरओ काउं.........। - अत: इस संदर्भ में गीतार्थ साधु को आगमाधार से कोई भी निर्णय लेने का अधिकार रहता है,ऐसा समझना चाहिए / किन्तु आगम परिशीलन के बिना स्वछंदता से कोई निर्णय लेने का या नियम बनाने का अथवा प्ररूपणा करने का अधिकार किसी को भी नहीं .होता है, ऐसा समझना चाहिए / . जो साधारण बुद्धि के साधु होते हैं वे जिस गच्छ या आचार्य आदि के नेतत्व में रहते हैं उन्हें उनकी आज्ञा में ही चलना जरूरी होता है / उनके गच्छ नायक जिन-जिन पूर्वाचार्यों के बनाये नियमों का व परम्पराओं का पालन करने का आदेश करते हैं या अपनी सामाचारिक व्यवस्था बनाते हैं उन सब नियमों का उस गच्छ वासी प्रत्येक साधु को पालन करना परम आवश्यक होता है / यदि उनका कोई आदेश या नियम स्पष्ट ही आगम विपरीत व सयम बाधक हो तो प्रमाण | 93
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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