________________ आगम निबंधमाला शिथिलाचार वत्ति में तो उन आगम विपरीत प्रवत्तियों को पूर्ण रूप से छोड़ने का लक्ष्य नहीं होता है अथवा ये आगम विपरीत है ऐसा स्वीकारने की भावना भी कहीं-कहीं नहीं होती है, उसका खेद एवं प्रायश्चित्त कर शुद्ध बनूंगा ऐसी भावना नहीं होती है किंतु कभी कहीं उस प्रवत्ति को निर्दोष घोषित करने की उल्टीबुद्धि व परूपणा भी रहती है। / अत: अपवादस्वरूप, व्यक्तिगत इत्वरिक, खेद प्रायश्चित्त की भावना युक्त आगम विपरीत आचरण, दोष रूप होते हुए भी, शिथिलचार नहीं कहलाता है / इस कथन में संशय नहीं करना चाहिए / प्रश्न-२ पूर्वाचार्यो के द्वारा बनाये गये कई नियमों का पालन नहीं करना भी शिथिलचार नहीं है ऐसा कहने का क्या कारण है ? उत्तर- पूर्वाचार्यों के दो प्रकार समझना चाहिये / (1) पूर्वधर तथा (2) पूर्वज्ञान रहित / पूर्वधर के भी दो प्रकार- (1) दस पूर्व से कम ज्ञान वाले (2) दस पूर्व से चौदह पूर्व तक के ज्ञानी / - दस पूर्व से चौदह पूर्व तक के ज्ञानी द्वारा रचे गये नियम परिपूर्ण प्रमाण की कोटि में गिने जाते हैं और उनकी रचना को श्रुत, शास्त्र या आगम अथवा भगवद् वाणी कहा जा सकता है / (नंदी सूत्र व बहत् संग्रहणी गाथा 154 के आधार से) तथा शेष आचार्यों की रचना के शास्त्र उनके समकक्ष नहीं कहे जाते अर्थात् उनकी रचना की प्रमाणिकता व सम्यकता में परिपूर्णता न होकर भजना होती है- नंदी सूत्र। अत: आचार्यों द्वारा उन्नति के दृष्टिकोण से बनाये गये नियम होते हुए भी उनमें से कई नियमों में छामस्थिक दोष, अति प्रवर्तन व आगम विपरीतता आदि दोषों की संभावना रह सकती है एवं कुछ नियम इन दोषों से रहित भी हो तो भी सर्व क्षेत्र, काल या सभी गच्छ या प्रत्येक व्यक्ति के लिये आगम नियम के समान महत्वशील या जरूरी नहीं बन सकते / प्रश्न-३, परम हितैषी, धुरंधर विद्वान, बहुश्रुत, आचार्यों के द्वारा निर्मित नियम की भी कोई अल्प ज्ञानी साधु उपेक्षा करे यह अनधिकार चेष्टा नहीं होगी 2