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________________ आगम निबंधमाला सहृदयता का झरना समाज में बहा कर भावी पीढ़ी को धर्म में जोड़ने के लिए वरदान रूप बनना चाहिए / निबंध- 17 शिथिलाचार निबंधके तथा अन्य प्रश्नोत्तर प्रश्न-१ आगम विपरीत आचरण भी कभी शिथिलचार नहीं होता है यह कैसे ? उत्तर- (1) शारीरिक अनेक परिस्थितियों से एषणा आदि समितियों में दोष लगाना, छ: काया की विराधना रूप प्रथम महाव्रत में दोष लगाना, डाक्टर या दवा आदि के लिये संपत्ति के उपयोग रूप पाँचवें महाव्रत में दोष लगाना इत्यादि आगम विपरीत आचरण ही है। जैस कि साधु के लिये डाक्टर आदि का कार' आदि से आना-जाना, छोटा या बड़ा आपरेशन करना, जिसमें कि पानी एवं अग्नि की विराधना होती है तथा डाक्टरों की प्रवतियों से त्रस जीवों की व लीलन-फूलण आदि वनस्पति की तथा समुच्छिम मनुष्यों की विराधना होती है / ये सब आगम विपरीत ही आचरण है। जीवन पर्यन्त का तीन करण तीन योग से साधु के पच्चक्खाण होता है / अत: इस प्रकार महाव्रत आदि का भंग स्पष्ट रूप से आगम विपरीत आचरण है / (2) शारीरिक परिस्थितियों के सिवाय भी गीतार्थ साधु के द्वारा, इत्वरिक व व्यक्तिगत रूप से, हानि लाभ के तुलनात्मक विचारों से या आध्यात्मिक दृष्टिकोण कुछ गौण होकर सामाजिक दृष्टिकोण के प्रमुख बनने से, यह दोषयुक्त प्रवत्ति है ऐसा समझते हुए भी, आवश्यक लगने पर ही तथा शीघ्र ही उस प्रवत्ति का प्रायश्चित्त लेकर शुद्धि करने की भावना सहित, महाव्रत आदि से विपरीत प्रवत्ति को अपवाद रूप में करना भी आगम विपरीत आचरण तो है ही / . तथापि ये उक्त दोनों तरह के आपवादिक आचरण शुद्ध संयम पालन और शुद्ध जिनाज्ञा पालन नहीं कहलाते हुए भी शिथिलाचार भी नहीं कहे जा सकते / [ 91 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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