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________________ आगम निबंधमाला क्रियाओं के रहते हुए भी अवंदनीय हो जाते हैं / अत: वंदना न करने के पीछे वास्तव में क्रिया की अपेक्षा कषाय और तुच्छ भावों की प्रमुखता है / जब कोई उत्कष्टाचारी विशाल श्रमण संघ में मिल जात हैं तो इनके सभी साधु श्रावकों के लिए श्रमण संघ के संत वंदनीय हो जाते हैं और जब ये अपनी किसी भी संकीर्ण भावना से पुनः श्रमण संघ से अलग हो जाते हैं तो श्रमण संघ के साधु-साध्वी इनके लिए अवंदनीय हो जाते हैं / यथा-आचार्यश्री गणेशीलालजी म.सा. तथा आचार्यश्री हस्तिमलजी म.सा. श्रमणसंघ में मिले और अलग हुए तब / ये शुद्धाचारी श्रमण श्रावकों को यह भी सिखाते हैं कि अन्य जैन श्रमणों को वंदन करने में समकित में दोष लगता है, समकित मलिन होती है या समकित नष्ट हो जाती है किन्तु जब ये ही उत्कष्टाचारी कभी श्रमण संघ में मिल जाते हैं या किसी गच्छ के साथ प्रेम संबन्ध जोड़ लेते तब उन्हें वंदन करने पर इन श्रमणों और श्रमणोपासकों की समकित नही जाती है यह बडे ही आश्चर्य की बात है। - इन उत्कष्टाचारी गच्छों का कोई साधु आत्म शान्ति समाधि के लिए यदि गच्छ का त्याग कर देता है तो दूसरे ही दिन संपूर्ण उसी क्रिया के रहते हुए भी ये श्रमण श्रमणोपासकं उसे अवंदनीय समझने लग जाते है / यह मेरे-तेरे का साम्राज्य नहीं तो और क्या है ? क्रिया का तो मात्र बहाना ही है यह प्रत्यक्ष सिद्ध है / तथ्य यही है कि ढोल तो क्रिया का पीटा जाता है किन्तु वास्तव में मेरा-तेरा पन का झगड़ा और कषाय कलह अभिमानं का साम्राज्य ही अधिक है। तभी एक सरीखी समाचारी वालों के फूट से हुए दो टुकडो में परस्पर साधु-श्रावको का वंदन व्यवहार पाप रूप बन जाता है इसलिये उपर सत्य वाक्य कहा गया है कि ढोल तो क्रिया पीटा जाता है परंतु वंदन नहीं करने का मुख्य कारण मेरेतेरे का साम्राज्य ही होता है जो धार्मिकता में निम्न से निम्न कोटि का आचरण होता है / धर्मी, शुद्धाचारी और जैन श्रमण श्रमणोपासक तथा वीतराग मार्ग के अनुयायी कहलाने वालों को अपनी इस रागद्वेषात्मक वत्ति के प्रति शर्म आनी चाहिए एवं उस वत्ति का त्याग कर प्रेम और o anmammmsamumanimaveeuropanomm anemomes
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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