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________________ आगम निबंधमाला ये आयम हमारी आत्मा की उन्नति में किस प्रकार प्रेरक बन रहे हैं उसकी आंतर विचारणा पाठकों को इन आगम निबंध माला के प्रत्येक भागों के अंदर जगह-जगह मिलेगी। उपसंहार :- (1) श्वेतांबर स्थानकवासी जैनों की मान्यतानुसार 11 अंग, 12 उपांग, 4 छेद, 4 मूल और आवश्यक सूत्र ये 32 सूत्र आत्मसुधार के लिये साधक के किस तरह उपयोगी होते हैं उसकी विचारणा यहाँ क्रमश: की गई है / (2) श्वे. मूर्तिपूजक आराधकों की मान्यतानुसार 45 आगम शास्त्र है एवं (3) नंदी सूत्र की आगम सूची अनुसार 73 आगम है तथा (4) विशाल दृष्टिकोण की अपेक्षा श्वेताम्बर मान्यता में 84 आगम भी कोई समय कहे जाते रहे हैं / उन सबका संक्षिप्त परिचय या नामांकन आदि की विचारणा जानकारी भी साधक को ध्यान में ले लेनी चाहिये / क्यों कि वह हमारा जैन साहित्य रूप अक्षय ज्ञान कोष है। आगम नियमानुसार योग्य एवं जिज्ञासु कोई भी साधक इस साहित्य के अध्ययन का अधिकारी है।। जिनशासन की समस्त व्यवस्था के मूलभूत ये आगम ग्रंथ ही है। इसी में से यत्किंचित् आचरण करने से परमपद के मार्ग की प्राप्ति सहज बनती है / क्षण-क्षण(प्रतिक्षण) जागृत रह कर आत्म- सुधार करने की शिक्षा इन आगमों में एवं विशेषकर उत्तराध्ययन सूत्र में दी गई है / ॥समयं गोयम मा पमायए // सोये हुए व्यक्तियों के बीच प्रज्ञासंपन्न पंडित साधक जागत रहते है वे प्रमाद में विश्वाश नहीं करते, काल(मौत) अति निर्दय है, शरीर दुर्बल है, भारंडपक्षी की तरह सावधान होकर साधकों को विचरण करना चाहिये / गाथा सुत्तेसु यावि पडिबुद्धजीवी, नो वीससे पंडिए आसुपण्णे / घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं, भारंड पक्खी व चरेप्पमत्तो ॥उत्तरा.॥ विश्व के समस्त विषय कोई न कोई तरीके से आगम में समाहित किये गये हैं / व्यक्ति, कुटुम्ब या विश्व की अनेक समस्याओ का समाधान इन आगमों में से मिल सकता है / आगम में प्राप्त होने वाली सूक्तियाँ शुष्क या तर्कवादी ही नहीं है किंतु जिनका जीवन ही / 9
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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