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________________ आगम निबंधमाला प्रयोगशाला बना था ऐसे परम वैज्ञानिक प्रभु महावीर की तप अनुभूति के ऐरण पर घडी हुई परम सत्य की सफल अभिव्यक्ति है। . इस आगमवाणी के जनक तीर्थंकर गणधर मात्र विचारक या चिंतक ही नहीं थे परंतु स्वयं उत्कृष्ट साधक थे / तत्त्वों या व्रतों को मात्र चिंतन की भूमिका तक ही सीमित नहीं रखकर चारित्र आचार में परिवर्तन करके जीवन को जीते थे / उनकी ही वाणी और विचार, अनुभव शास्त्रभूत बन गये हैं / ये शास्त्र जीव को परम पद प्राप्त कराने में पूर्ण सक्षम है। सद्गुरु की आज्ञा लेकर इन शास्त्रों का अध्ययन किया जाय, ज्ञानी गुरु भगवंतो की सेवा में, समागम में इनका अर्थ रहस्यार्थ समझा जाय और उसे निज जीवन में आचरण रूप अवतरित किया जाय तो अवश्य अपने को भी मुक्ति मार्ग और अंत में मुक्ति की प्राप्ति होने वाली ही है इसमें किंचित् भी संदेह को स्थान नहीं है, ऐसा समझना चाहिये / इन जिनागमों में, सूत्र सिद्धांत में- विचार, वाणी और वर्तन का, वत्ति-प्रवत्ति का तथा निवत्ति भावना और कर्तव्यों का अद्भुत समन्वय, सुमेल देखने को मिलता है / इस अवसर्पिणी काल में भी तीर्थंकर गणधर 14 पूर्वी आदि के अभाव में भी इस आगम वाणी के 21000 वर्ष चलने का पूरेपूरा विश्वास दर्शाने वाले हमारे ये आगम हमारी ज्ञान आत्मा की अमूल्य निधि के रूप में हमें बड़े सद्भाग्य से मिले हैं। पुष्करावर्त मेघ की वर्षा का असर अनेक वर्षों तक वर्षा न हो तो भी रहता है जिससे वृक्षों पर फल आते रहते हैं और फसलें पकती रहती है। किंतु भगवान महावीर की वाणी, उपदेश धारा रूप पावन मेघ का असर इस पाँचवें आरे के अंत तक अर्थात् 21000 वर्ष तक रहने वाला है। फल और फसल के समान साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका आराधक जीवन जीकर आत्म कल्याण साधन करत रहेंगे, ऐसे ये हमारे परम पावन आगम हमें बडे ही सौभाग्य से प्राप्त हुए हैं / इनके अध्ययन मनन में हमें परिपूर्ण योगों से तल्लीन बनकर आत्म कल्याण की साधना कर लेनी चाहिये। 0000
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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