________________ आगम निबंधमाला . . स्वीकार किया है किंतु दिगंबर जैन समाज ने अपनी ऐसी मान्यता बनाई एवं प्रचारित की कि भगवान के 980 वर्ष बाद शास्त्रों का लेखन हुआ उसे हम भगवान की वाणी है ऐसा स्वीकार नहीं सकते। उनके मतानुसार ऐसे समय में कुंदकुंदाचार्य हुए थे। वे अपनी लब्धि से महाविदेह क्षेत्र में विहरमान तीर्थंकर सीमंधर स्वामी के पास गये, ज्ञान समाधान लेकर आये / फिर तामिलनाडु में गुफा में बैठकर ग्रंथ समयसार, नियमसार आदि शास्त्र रचे / (अपने गुरु की या मत चलाने वाले की ऐसी अतिशयोक्तिपूर्व खोटी बातें बनाकर डींग हाँकी जाती हैं, ऐसा रवैया अतिभक्ति से चलता है और आगम की कसोटी पर अपने पूज्य गुरु को बदनाम करता है। यथाकोई गये, चूलिका लाये; कोई गये, आये, प्रज्ञापना बनाया। दादा भगवान के प्रचारक भी ऐसी बेतुकी बातें अपनी शान के लिये बनाते हैं / ) __ वास्तव में सामान्य मानव(१४ पूर्वज्ञान के बिना) अथवा कोई भी साधु-साध्वी महाविदेह में देव सहाय से भी इस काल नहीं जा सकते। ऐसी खोटी बातें पीछे से होने वाले शिष्य प्रशिष्य आतिशयोक्ति से रच देते हैं / यह सब फिजुल की अति होशियारी है और खोटी शेखी लगाना है / दिगंबरो के द्वारा आगमों को नकारने के बावजूद भी वर्तमान श्वे. जैन आगमों के तत्त्वज्ञान के उत्कृष्ट साहित्य को पूरे विश्व के विद्वानों ने स्वीकारा है। इन आगम ग्रंथो में चार अनुयोगमय सभी विषयों में जगह-जगह जीव में से सिद्ध बनने की प्रक्रिया का निर्देश, संकेत मिलता है। ये आगम शास्त्र जैन शासन की नीव रूप है / इनमें ज्ञान दर्शन चारित्र इस रत्नत्रय की मालिकी प्राप्त कराने के सिद्धांत-नियम आचारों का विशद् विवेचन है / इसमें कहे गये आचार अवश्य मानव की आत्मोन्नति करा . सकते हैं। इस तरह दिगंबर समाज ने मौजूद सद्शास्त्रों को नकार कर अपनी जिद्द या धुन के अनुरूप नये शास्त्रों की रचना करके उन्हें स्वीकारा है और असली आगमों को नकली आगम होने का निरूपण किया है। फिर भी- कीमत घटे नहीं वस्तु नी, भाखे परीक्षक भूल / जेनो जेहवो पारखी, करे मणि नो मूल /