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________________ आगम निबंधमाला संवर्धन तथा लेखन करके अद्भुत योगदान दिया है / ...समग्र मानवजाति के कल्याण की हितचिंता रूप तीर्थंकर नामकर्म का उदय करुणा के सागर प्रभु महावीर स्वामी को सतत उपदेश देने के लिये उत्प्रेरित करता है / जिसके फलस्वरूप विश्व के दर्शन साहित्य को अमूल्य भेंट प्राप्त होती है। - आगमों का चिंतन, स्वाध्याय एवं परिशीलन अज्ञान अंधकार को दूर करके ज्ञान रूपी दीपक का प्रकाश प्रगट करता है / जैन तत्त्वज्ञान, आचारशास्त्र तथा विचारदर्शन का शुभग समन्वय के साथ संतुलित एवं मार्मिक विवेचन आगमों में भरा है जिससे उन आगमों को जैन परंपरा का जीवन दर्शन कह सकते हैं। _ पापवत्ति और कर्मबंधन में से मुक्त होकर पंचम गति के शाश्वत सुख किस प्रकार प्राप्त किये जा सकते हैं उसे दिखाने के लिये हिंसा आदि दूषणों के परिणाम दिखाकार अहिंसा के परमध्येय की पुष्टि करने के लिये अनेक सद्गुणों की प्रतिष्ठा उन आगम शास्त्रों में की गई है / आगम के नैसर्गिक तेज पुंज में से एक छोटी सी किरण भी हमें मिल जाय तो अपना जीवन प्रकाशमय हो जाय / आत्मा को कर्म मुक्त होने की प्रक्रिया में प्रवाहित करने वाले ये आगम आत्म सुधारणा करने के लिये अमूल्य साधन है। _गणधर भगवंत द्वारा भगवान की वाणी को लेकर सूत्रबद्ध किये गये ये आगम, जीवों के कल्याण के लिये एवं व्यक्ति को ऊर्ध्व गति का पथिक बनाने के लिये प्रेरणा प्रकाश फैलाते हैं। . अनादिकाल से आत्मा पर लगे हुए कर्मरज को साफ करने की प्रक्रिया अर्थात् आत्मसुधार / आत्मा पर कर्मों के द्वारा विकृति तथा मलिनता के परत जमे हुए हैं जिससे हम अपनी आत्मा के सच्चे स्वरूप को देख-समझ नहीं सकते / अपार शक्ति के मालिक आत्मा के दर्शन हों जाय अर्थात् आत्म स्वरूप का ज्ञान आभाष हो जाय तो संसार के दुःख रूप जन्म मरण की श्रृंखला से मुक्ति मिल जाय / .. श्वे. जैन समाज ने भगवान महावीर स्वामी के वचन एवं गणधरों के द्वारा गुंथन किये आगम जो हमें परंपरा से प्राप्त हो रहे हैं, उनका
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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