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________________ आगम निबंधमाला प्राक्कथन : आगम महात्म्य - श्री गुणवंत बरवालिया-मुंबई अपार करुणा के अवतार प्रभु महावीर स्वामी ने भव्य जीवों के बोध के लिये उपदेश फरमाये जो गौतम आदि गणधर भगवंतो के द्वारा आगमों के रूप में गूंथे हुए हमें आज परंपरा से प्राप्त हैं। तीर्थंकर भगवंत को केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न होने पर यथासंयोग यथाविधि देव, मनुष्य और तिर्यंच प्राणी भगवान की वाणी श्रवण करने हेतु समवसरण में पहुँच कर अपने अपने योग्य आसन पर स्थित हो जाते हैं। प्राप्त परंपरानुसार भगवान 12 प्रकार की परिषद में मालकोश राग के उच्चारण (लय) में अर्द्धमागधी भाषा में औपपातिक सूत्रानुसार यथाक्रम से पहले 9 तत्त्वों, 6 द्रव्यों का निरूपण कर फिर सर्वविरति एवं देशविरति धर्म का निरूपण करते हैं / सभी जीव भगवान के तीर्थंकर नामकर्म के अस्तित्व एवं प्रभाव से अपनी अपनी भाषा में समझते हैं / औपपातिक सूत्र का उपरोक्त उपदेश विषय एक उदाहरणरूप समझना। जिनका उपादान उत्कृष्ट है, जिनमें गणधर बनने की योग्यता है, वे भगवान का उपदेश सुनकर वहीं दीक्षित होते हैं और दीक्षा अंगीकार करते ही ज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम बढने पर उन्हें पूर्वभव में प्राप्त द्वादशांगी श्रुत उपस्थित हो जाता है / क्योंकि शासन की स्थापना के प्रथम दिन ही वे द्वादशांगी की रचना करते हैं वही आगम ज्ञान की अमूल्य परंपरा हमें भी प्राप्त हो रही है। __ वीर निर्वाण 980 वर्ष बाद आचार्य देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण को अनुभूति हुई कि मौखिक आगम परपरा अब अक्षुण्ण चलने वाली नहीं है, मानव की स्मरण शक्ति घटती जा रही है इसलिये वल्लभीपुर में संत महात्माओं के सहयोग से निरंतर 13 वर्षों के श्रम से आगमों को लिपिबद्ध किया / तदनंतर अनेक पूर्वाचार्यों ने श्रमण संस्कृति की इस ज्ञानधारा को गतिमान रखने के लिये समय-समय पर आगमों का संपादन, संशोधन,
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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