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________________ आगम निबंधमाला मुहूर्त बताता है, कोई केवल ममत्व करता है, कोई केवल विकथाओं में समय बिताता है, कोई दर्शनीय स्थल देखता रहता है / अन्य कुछ भी दोष नहीं लगाता है / ये चारों मुख्य दोष नहीं है अपितु सामान्य दोष हैं। ___मस्तक व आँख उत्तमांग हैं / पांव, अंगुलियां, नख, अधमांग है। अधमांग में चोट आने पर या पांव में केवल कीला गड़ जाने पर भी जिस प्रकार शरीर की शान्ति या समाधि भंग हो जाती है / इसी प्रकार सामान्य दोष से भी संयम-समाधि तो दूषित होती ही है / इस प्रकार तीनों श्रेणियों वाले दूषित आचार के कारण शीतलविहारी (शिथिलाचारी) कहे जाते हैं किन्तु जो इन अवस्थाओं से दूर रहकर निरतिचार संयम का पालन करते हैं वे उद्यतविहारी- उग्रविहारी (शुद्धाचारी) कहलाते हैं। परस्पर वंदन निर्णय :(1) दूसरी और तीसरे श्रेणी वाले पहली श्रेणी वाले को वंदन आदि करे तो प्रायश्चित्त आता है। किन्तु दूसरी तीसरी श्रेणी वाले आपस में या शुद्धाचारी छहों निर्ग्रन्थों को वंदन करे तो प्रायश्चित्त नहीं आता (2) शुद्धाचारी उक्त तीनों श्रेणी वालों को वंदन आदि करे तो प्रायश्चित्त आता है किन्तु दूसरी और तीसरी श्रेणी वालों को गीतार्थ के निर्णय एवं आज्ञा से वंदन करे तो प्रायश्चित्त नहीं आता है / (3) शुद्धाचारी शुद्धाचारी को वंदन करे तो कोई भी प्रायश्चित्त नहीं आता है / और शिथिलाचारी शिथिलाचारी को वंदन करे तो उसको भी कोई प्रायश्चित्त नहीं है / (4) प्रथम श्रेणी के अतिरिक्त किसी को सकारण परिस्थिति में गीतार्थ की आज्ञा होने पर भी जो वदन आदि न करे तो वह भी प्रायश्चित्त का पात्र होता है / (5) शुद्धाचारी भी यदि अन्य शुद्धचारी को वंदन आदि नहीं करे तो वे भी प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं एवं जिन शासन के अपराधी हैं / 00000 [ 85
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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