________________ आगम निबंधमाला निबंध-१५ पासत्था आदि की प्रवत्ति वाला भी निर्ग्रन्थ पासत्था आदि की व्याख्या करते हुए संयम विपरीत जितनी प्रवत्तियों का यहाँ कथन किया गया है, उनका विशेष परिस्थितिक अपवाद रूप में गीतार्थ या गीतार्थ की नेश्राय से सेवन किये जाने पर तथा उनकी श्रद्धा प्ररूपणा आगम के अनुसार रहने पर एव उस अपवाद स्थिति से मुक्त होते ही प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध संयम आराधना में पहुँचने की लगन(हार्दिक अभिलाषा) रहने पर, वह पासत्था आदि नहीं कहा जाता है / किन्तु प्रतिसेवी निर्ग्रन्थ कहा जाता है। शुद्ध संस्कारों के अभाव में, संयम के प्रति सजग न रहने से, अकारण दोष सेवन से, स्वच्छंद मनोवत्ति से, आगमोक्त आचार के प्रति निष्ठा न होने से, निषिद्ध प्रवत्तियाँ चाल रखने से तथा दोष प्रवत्ति सुधारने व प्रायश्चित्त ग्रहण करने का लक्ष्य न होने से, उन सभी छोटी या बड़ी दूषित प्रवत्तियों को करने वाले पासत्था आदि कहे जाते हैं / इन अवस्थाओं में वे निर्ग्रन्थ के दर्जे से बाहर गिने जाते हैं / 1. इन पासत्था आदि का स्वतंत्र गच्छ भी हो सकता है / 2. कहीं वे अकेले-अकेले भी हो सकते हैं / 3. उद्यतविहारी गच्छ में रहते हुए भी कोई भिक्षु व्यक्तिगत दोषों से पासत्था आदि हो सकता है तथा 4. पासत्था आदि के गच्छ में भी कोई शुद्धाचारी हो सकता है / इनका यथार्थ निर्णय तो आगमज्ञाता विशिष्ट अनुभवी या सर्वज्ञ सर्वदर्शी कर सकते हैं, कदाचित् स्वयं की आत्मा भी निर्णय कर सकती है। :: शुद्धाचारी भी कोई पासत्था आदि शिथिलाचारी :: इस युग के कुछ श्रमण पाँचों महाव्रतों का एवं संपूर्ण जिनाज्ञा का परिपूर्ण पालन करते हैं ऐसा प्रचलित परम्परा के अनुसार माना जाता है किन्तु आगम विपरीत प्रव्रत्तियों का एवं परंपराओं का जब तक पूर्ण संशोधन न हो तब तक उनका भी