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________________ आगम निबंधमाला २.पासत्था- संयम का उत्साह मात्र कम हो जाना, पूर्ण अलक्ष्य हो जाना, आलसीपन हो जाना / अन्य लक्ष्यों की प्रमुखता हो जाना / 3. उसण्णा- प्रतिलेखन, प्रतिक्रमण आदि अनेक दिनचर्या समाचारी में शिथिलता वाला। 4. कुशीला- विद्या, मन्त्र, निमित्त, कौतुक कर्म आदि आभियोगिक प्रवति वाला / 5. संसत्ता- बहुरूपिया के समान वत्ति वाला, चाहे जैसा हीनाधिक आचार वाला बन जावे / 6. नितिया- कल्प काल की मर्यादा भंग करने वाला या सदा एक जगह रहने वाला। 7. काहिया- विकथाओं में प्रवत्ति करने वाला / 8. पासणिया- दर्शनीय स्थल देखने जाने वाला। 9. मामगा- आहार उपधि, शिष्य, गांव, घरों में या श्रावकों में ममत्व मेरा-मेरा ऐसे भाव रखने वाला। 10. संपसारिया- गहस्थ के कार्यों में सलाह देने व मुहूर्त देने की प्रवत्ति करने वाला। नोट :- इन दसों की विस्तार से व्याख्या अन्य निबंध में देखें / ___ शुद्धाचारी के निर्णय के लिए भी मुख्य दो बातों पर ध्यान देना चाहिये / यथा- 1. जो बिना कारण-परिस्थिति के आगम विपरीत कोई भी आचरण करना नहीं चाहता है / 2. अपनी प्रवत्ति अमुक आगम पाठ से विपरीत है ऐसा ध्यान में आते ही यदि कोई परिस्थिति न हो तो यथाशक्य तत्काल उसे छोड़ने को तत्पर रहता है। मात्र परम्परा के नाम से धकाने की बहानाबाजी नहीं करता है / उसे शुद्धाचारी समझना चाहिये / इस उक्त विचारणाओं पर से निम्न परिभाषा बनती है / निष्कर्ष निर्मित परिभाषा :- 1. शुद्धाचारी- जो आगमोक्त सभी आचारों का पूर्णरूप से पालन करता है। अकारण कोई अपवाद सेवन नहीं करता है। किसी कारणवश अपवाद रूप दोष के सेवन किये जाने पर उसका प्रायश्चित्त स्वीकार करता है / कारण समाप्त होने पर - we RREARuma-www - Han
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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