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________________ आगम निबंधमाला उस प्रवत्ति को छोड़ देता है और आगमोक्त आचारों की शुद्ध प्ररूपणा करता है, वह शुद्धाचारी है / 2. शिथिलाचारी- जो आगमोक्त एक या अनेक आचारों से सदा विपरीत आचरण करता है, उत्सर्ग अपवाद की स्थिति का विवेक नहीं रखता है, विपरीत आचरण का प्रायश्चित्त भी नहीं लेता है, आगमोक्त आचारों से विपरीत प्ररूपणा करता है, वह “शिथिलाचारी" है। आगमोक्त विधि निषेधों के अतिरिक्त क्षेत्र काल की दृष्टि से या विशेष सावधानी आदि किसी भी दृष्टिकोण से जो किसी भी समुदाय में जो समाचारी का गठन किया जाता है उसके पालन से या न पालने से किसी अन्य समुदाय वालों को शुद्धाचारी या शिथिलाचारी समझना उचित नहीं है / किन्तु जिस समुदाय में जो रहते हैं, उन्हें . उस संघ की आज्ञा से उन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। ऐसे व्यक्तिगत सामाचारिक नियमों की तालिका एवं आगम विधानों की तालिका अन्य लेख में पढ़ें / निबंध-११ आत्म निरक्षणीय दूषित प्रवत्तियों की सूचि (1) कारण अकारण का विचार किए बिना, प्रवृति रूप से ततीय प्रहर के अतिरिक्त समय में अर्थात् प्रथम चतुर्थ प्रहर में आहार लाना या खाना / -उत्त. 26 / (2) अकारण विगय युक्त आहार करना अथवा आचार्य आदि की आज्ञा बिना विगय खाना / -निशी. 4 / (3) मार्ग में चलते समय किसी से वार्तालाप करते रहना / -आचा. श्रु.२, अ.३।. (4) कीड़ियों आदि जीवों से युक्त अर्थात् जीवों की अधिकता वाले उपाश्रय में ठहरना / -आचा. श्रु.२, अ. 2 / (5) मल-मूत्र परठने की भूमि से रहित उपाश्रयो में ठहरना / -आचा. श्रु.२, अ.२, उद्दे.२, दशवै. 8 / 67
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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