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________________ आगम निबंधमाला सामाचारिक नियमों के अपालन से किसी को शिथिलाचारी नहीं समझना तथा आगम सिद्ध स्पष्ट निर्देशों का व्यक्तिगत लाचारी से, आपवांदिक स्थिति रूप में व यथासंभव शीघ्र शुद्धिकरण की भावना युक्त होकर भंग किया जाय तो उसे भी शिथिलाचार नहीं समझना। 1. निष्कारण और परम्परा प्रवत्ति रूप के अपने आगम विपरीत आचरणों को भी शिथिलाचार नहीं मानना या 2. शुद्धाचार में मानने की बुद्धिमानी करना यह योग्य नहीं है / दुहरा अपराध कहलाता है। साथ ही 3. दूसरों की सकारण इत्वरिक दोष प्रवत्ति के लिए भी शिथिलाचार कहना या समझना ये सब अयोग्य समझ है, इसमें सुधार कर लेना चाहिए। जिन विषयों में आगम में कोई स्पष्ट विधान या निषेध अथवा प्रायश्चित्त नहीं है उन विषयों में मान्यता भेद से जो भी आचार भेद हो उसे भी शिथिलाचार की संज्ञा में समाविष्ट नहीं करना चाहिये / संक्षेप में-आपवादिक स्थिति के बिना संपूर्ण स्पष्ट आगम निर्देशों का शुद्ध पालन करना शुद्धाचार है। व शुद्ध पालन न करना शिथिलाचार है / अस्पष्ट निर्देशों व अनिर्दिष्ट आचारों सामाचारियों का पालन या अपालन शुद्धाचार या शिथिलाचार का विषय नहीं है। शिथिलचार का निर्णय करने के लिए मुख्य दो बातों का विचार करना चाहिये- 1. यह प्रवत्ति किसी स्पष्ट आंगम पाठ से विपरीत है ? 2. बिना विशेष प्रसंग या परिस्थिति से, शुद्धिकरण की भावना के बिना मात्र स्वछन्दता से यह प्रवत्ति की जा रही है ? .. इन दो बातों के निर्णय से शिथिलाचार का निर्णय किया जा सकता है / दोनों बातों का शुद्ध निर्णय किये बिना शिथिलाचार का सही निर्णय नहीं हो सकता / शिथिलाचारी को आगमों में अपेक्षा से 10 विभागों में विभक्त किया गया है / यथा-१. अहाछन्दा 2. पासत्था 3. उसण्णा 4. कुशीला 5. संसत्ता 6. नितिया 7. काहिया 8. पासणिया 9. मामगा 10 संपसारिया / इनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है१. अहाछंदा-आगम निरपेक्ष स्वमति से प्ररूपणा करने वाला / [65 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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