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________________ आगम निबंधमाला शास्त्रों का कार्य हुआ / उस व्याख्या का नाम नियुक्ति व्याख्या रखा गया / उसके 100 वर्ष बाद करीब वीरनिर्वाण 1150 वर्ष के करीब उन शब्दार्थों का विशेषार्थ लिखने की आवश्यकता हई / उस व्याख्या का नाम भाष्य व्याख्या रखा गया / वह भी प्राकृत श्लोक गाथा रूप में की गई है / इस कार्य के करने वाले आचार्य जिनभद्रगणि.क्षमाश्रमण आदि विद्वान हए / उसके 100 वर्ष करीब बाद गद्यमय प्राकृत भाषा में विवेचन-विवरण आगमों पर लिखे गये जिन्हें चूर्णि व्याख्या कहा गया / इस कार्य के करने वाले आचार्य जिनदासगणि महत्तर, अगस्त्यसिंह सूरि आदि महान पुरुष अनेक हुए / तब तक हरिभद्र सूरि का समय भी आ पहुँचा था। उन्होंने भी कुछ आगमों पर प्राकृत भाषा में चूर्णि व्याख्या लिखी थी / उन्हीं के समय से शास्त्रों की संस्कृत व्याख्या विवेचन स्पष्टीकरण भी लिखे जाने लगे / 1000 + 50 + 100 + 100 + 100 = 1350 वीर निर्वाण के एवं विक्रम की सातवीं आठवीं सदी का समय आया / फिर विक्रम की १२वीं सदी तक संस्कृत व्याख्याओं का समय चला / तब तक उपलब्ध सभी आगमों की संस्कृत प्राकृत व्याख्याएँ एक या अनेक आचार्यों की प्रचलित हो गई थी। यहाँ पर हेमचन्द्राचार्य तथा आचार्य मलयगिरी जी का समय हो रहा था / अनेक जैन इतिहास ग्रंथ, उपदेश ग्रंथ, कथाग्रंथ आदि भी लिखे जाने लगे थे / इस प्रकार जैन साहित्य बढता ही गया, कुछ शुद्ध भी रहा, कुछ विकृत और कुछ मनमाना छद्मस्थता स्वार्थता युक्त एवं अपने विविध आग्रहों की पुष्टी के ग्रंथ तथा एक दूसरे के खंडन मंडनात्मक ग्रंथ भी संस्कृत प्राकृत में बनते गये / इस मध्य काल मे जिन शासन में भी संस्कृत प्राकृत व्याकरण का बहुत प्रचलन रहा / महान धुरधर विद्वान संत-श्रमण आचार्य हुए / इस व्याख्या ग्रंथों के समय तक के ग्रंथो में कहीं भी पर्युषणा कल्पसूत्र का नामो निशान भी देखने को नहीं मिलता है / विक्रम की १२वीं-१३ वीं शताब्दि के बाद में इस सूत्र का समय चला है जिस ज्यादा प्राचीन बताने की कई विचित्र कल्पनाएँ घडघड करके प्रचार | 27
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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