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________________ आगम निबंधमाला समाधान :- जब कंठस्थ परंपरा में परिवर्तन आया / देवर्धिगणी के समय सामुहिक लेखन युग का प्रारंभ हुआ / उसी समय से और उसके बाद के लेखन युग से जो हमारे तक पहुँचते 1500 वर्ष का पीरियड पार कर रहा है इसी युग में मध्यकाल में हुए परिवर्तन, पाठों की विभिन्नता, पूर्वापर कथन में विविधता-असमंजस आदि उपस्थित हुए हैं / ऐसा समझ लेने एवं मान लेने पर विशुद्ध 1000 वर्ष के पूर्वधरों के काल में पूर्वधर बहुश्रुत आचार्यों पर व्यर्थ का खोटा आक्षेप नहीं जाता है / देवधि के बाद का काल तो कई प्रकार से विकट ही बीता है / विधर्मी राजाओं का व्यवहार, यतिवर्ग का व्यवहार, परस्पर मतभेद, बौद्धों का व्यवहार, फिर दिगंबर-श्वेतांबर के विरोध, आरंभ समारंभ, आडंबर, लोकेषणा की साधुओ में वृद्धि आदि अनेक कारण बने हैं। फिर भी 5-25 प्रतिशत शुद्ध वर्ग भी सदा रहता आया है / अत: शासन का संही प्रवाह भी कुछ गतिमान रहा है / इस कारण आज भी हमारे पास पहुँचा साध्वाचार धर्माचरण एवं आगम श्रुत 75-80 प्रतिशत शुद्ध जिनवाणीमय पहँचा है, जो हमारे मोक्षमार्ग पराक्रम में पूर्ण सहायक एवं सफलता दिलाने में सक्षम है / जिसमें भी भस्मग्रह के उतरने पर लोकाशाह की क्रांति ने बहुत कुछ श्रुत एवं चारित्र धर्म का संरक्षण संवर्धन आगे बढाया है। व्याख्या साहित्य की रचना-लेखन :- देवर्द्धिगणि के समय 11 अंग शास्त्रों के लेखन संपादन एवं अंग बाह्य अनेक आगम श्रुत-उपांगसूत्र आदि के सर्जन संपादन लेखन हो जाने के बाद उन आगमों की अर्थपरंपरा मौखिक रखी गई थी अर्थात् केवल मूलपाठों का ही लेखन कराया गया था। उस अर्थ परंपरा के मौखिक चलते धीरे.२ सूत्र के अर्थ लेखन की आवश्यकता एवं विवेचन लेखन की आवश्यकता समय-समय पर साधकों, आचार्यों, बहुश्रुतों को होने लगी। जिससे देवर्द्धि के आगम लेखन व्यवस्था के करीब 50 वष बाद आगम शब्दों के व्युत्पत्ति परक निरुक्त अर्थ, शब्दार्थ, प्राकृत भाषा में पद्यमय श्लोक रूप में लिखे गये / यह कार्य आचार्य द्वितीय भद्रबाहु स्वामी, वराह मिहिर के भाई श्रमण ने किया। जिसमें 10 - - / 26
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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