SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला संवत्सर में विशिष्ट धर्म आराधना का एक दिन, वह संवत्सरी पर्व दिन / इस पर्व दिन के लिये निशीथ सूत्र उद्देशक 19 में विशिष्ट विधान है जिसके भाष्यादि प्राचीन व्याख्याओं में भादवा सदी पंचमी का उल्लेख मिलता है, जिसमें प्राचीन सभी व्याख्याएँ एक मत है। उनमें अधिक मास या तिथि घट-वध से पंचमी या भादवा के परिवर्तन की कोई चर्चा-विवाद की गंध मात्र भी नहीं है। समवायांग सूत्र के 70 वें समवाय में एक सूत्र में यह निरूपण है कि "श्रमण भगवान महावीर वर्षाकाल का 1 महीना 20 दिन बीतने पर और 70 दिन शेष रहने पर वर्षावास पर्युषित करते थे।" विचारणा- भगवान महावीर के 42 चातुर्मास का वर्णन जो भी प्राप्त होता है उसके अनुसार उन्होंने सभी चातुर्मास चार महीनों के ही किये थे। तो भी यहाँ भगवान के नाम से जो कुछ कहा गया है वह संदेहपूर्ण है / क्यों कि इसमें अनेक प्रश्नचिह्न अंकित होते हैं, यथा- यह विषय सित्तरवेंसमवाय में ही क्यों कहा? बीसवें या पचासवें समवाय में क्यों नहीं कहा? चातुर्मास का कथन है या पर्युषण का कथन है ? वगैरह..। वास्तव में कल्पसूत्र में ऐसा एक पाठ है जो बहुत लंबा एवं तर्क से असंगत सा है, उसी का यह प्रथम वाक्यांश है / कल्पसूत्र के उस कल्पित से पाठ को प्रामाणिकता की छाप के वास्ते उसके एक अंश को यहाँ अंगसूत्र में कभी भी किसी ने लगा दिया हो, ऐसी संभावना लगती है / अतः प्रस्तुत सूत्र से संवत्सरी के निर्णय की कल्पना करना सही नहीं है / इस सूत्र के नाम से 49-50 दिन की कल्पना करना और मूल में स्पष्ट लिखित 70 दिन की उपेक्षा करना भी योग्य नहीं है / प्रश्न- जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र में 50 वें दिन संवत्सरी करना कहा है? उत्तर-उस सूत्र में संवत्सरी संबंधी एक भी वाक्य नहीं है / उत्सर्पिणी काल के वर्णन में प्रथम तीर्थंकर के जन्म से हजारों वर्ष पहले कुछ (21000 वर्ष पहले) मांसाहारी मानव वनस्पतियों को विकसित सुलभ देखकर परस्पर मिलकर मांसाहार नहीं करने की मर्यादा बांधेगे, ऐसा * वर्णन है / उस समय प्रथम तीर्थंकर का शासन भी चालु नहीं हुआ होगा, साधु-साध्वी भी कोई नहीं होंगे। तब संवत्सरी का तो वहाँ प्रसंग भी 215
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy