________________ आगम निबंधमाला अपने मन से जब कभी बड़ा भोजन प्रसंग हो तो बिल्ली मार कर बर्तन से ढके तो उसे उचित नहीं कहा जा सकता है। ठीक चौथ की संवत्सरी का आग्रह भी उसी कोटि की मूर्खता का है और निशीथ सूत्र की उपेक्षा करने वाला है / अतः यह आगम विरुद्ध दुराग्रह है। . इस दुराग्रह के कारण ही कल्पसूत्र में किसी ने पाठ प्रक्षिप्त किया कि "उस दिन के पहले संवत्सरी करे तो कर सकते किन्तु बाद में नहीं / " वह पाठ भी नियुक्ति चूर्णिकार के बाद में जोड़ा गया है और निशीथ सूत्र उ. 10 के प्रायश्चित्त विधायक सूत्र से पूर्ण विरुद्ध है / क्यों कि वहाँ उस निश्चित्त दिन में न करके अन्य किसी भी दिन करे तो गुरु चौमासी प्रायश्चित्त कहा है। अत: निश्चित दिन भादवा सुदी पंचमी ही था जिसे अनेक व्याख्याओं और ग्रंथकारों ने स्वीकार किया है और आज भी ऋषिपंचमी तिथि पंचांगो में-टीपणो में प्रसिद्ध है / यह वास्तव में जैन मुनियों की ही, निश्चित्त पर्व तिथि है किन्तु चौथ के आग्रह काल से इसका महत्व जैन संघ भूल गया है / अन्य धर्म वालों का तो गणेश चतुर्थी पर्व दिन भादवा सुदी चौथ का है ही। अत: यह भादवा सुदी पंचमी-ऋषि पंचमी ही जैनों का संवत्सरी पर्व दिन है ऐसा निश्चित समझना चाहिए / एकता के हिमायती जैनियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि एक पंचांग को निश्चित्त कर उसमें लिखी ऋषि पंचमी के दिन संवत्सरी पर्व की आराधना करने का निर्णय करें एवं उसी पंचांग में लिखी सभी तिथियों को स्वीकार करें और पक्ष का जो अंतिम दिन लिखा हो उसी दिन पक्खी चौमासी करें। ऐसा करने से ही अनेकता दूर होकर एकता स्थापित हो सकती है / निबंध-५९ संवत्सरी विचारणा (निशीथ, समवायांग, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र आधारित) संवत्सरी के लिये आगम निशीथ सूत्र में पर्युषणा शब्द का प्रयोग किया गया है / संवत्सरी शब्द वर्तमान प्रचलित शब्द है / जिसका अर्थ है- पूरे | 214] -