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________________ आगम निबंधमाला .. संकलन से आशा-निराशा के उतार-चढाव से दूर रहकर तटस्थ बुद्धि रखकर पूर्वापर कही गई बातों का तथा सूचित स्थलों का गंभीर अध्ययन मनन करके सत्य प्राप्त करने की कोशीश करेंगे। परंतु परंपराओं के दुराग्रह चक्र में फंस कर इन लेखों में दर्शाई बातों से विस्मित नहीं बनेंगे और विषमभावी भी नहीं बनेंगे / अर्थात् इनके अध्ययन में गंभीरता रखेंगे / किंतु चमकेंगे भी नहीं एवं दमकेंगे भी नहीं / . और भी यह सूचन है कि पाठक को कोई तत्त्व पूर्ण समन्वय बुद्धि से कसौटी करने पर भी आगम विपरीत या असत्य होने जैसा आभाष हो, तर्क से भी विपरीत लगे तो एकबार मूल लेखक तक अपने विचार मंतव्य प्रेषित कर स्व पर के ज्ञान वद्धि के भागी बनने का प्रयत्न करेंगे / एवं मात्र भाषा या प्रूफ संबंधी सामान्य त्रुटि नजर आवे तो अनुग्रह करके सुधार कर स्वयं सही वाचन कर स्वयं समरस में सावधान बनेंगे / ऐसी त्रुटियाँ छद्मस्थ, अल्प ज्ञानियों से सहज संभावित भूल मानकर क्षमाभाव धारण कर लेखक संपादक आदि को भी अपनी उदार मनोवत्ति से क्षमा बक्षेगे / ॥इति शुभं भवतु सर्व जीवानाम्, उत्कर्षं भवतु प्रज्ञामंतानाम्॥ निबंध-३ भाषा विवेक क्या है ? आगमिक विचारणा खोटे मार्ग के प्रेरक या खोटे आचरण करने वालों को तथा खोटी त करने वालों को एवं हठाग्रहवृत्ति वालों को शिक्षित करने में भाषा की एकांत मदुता की बातें करना कभी अत्यंत भूल भरा कर्तव्य हो सकता है / इसके लिये कुछ आगम स्थलों का प्रेक्षण करें / यथा- (1) दशवैकालिक सूत्र में आहार संग्रह करने वाले श्रमणों के लिये मदु संकेत नहीं किंतु तीक्ष्ण शब्द प्रयोग करते हुए कहा गया है कि वे श्रमण गहस्थ हैं प्रव्रजित नहीं हैं / (2) उत्तराध्ययन सूत्र अध्य. 17 में कहा कि जो श्रमण प्रतिलेखन में प्रमाद करते हैं, विगयो का सेवन कर तपस्या नहीं करते हैं वे पापी श्रमण हैं / यह कैसा मदु शब्द प्रयोग है देखें / (3) महानिशीथ सूत्र में- उन मिथ्यादृष्टि कूलिंगी (जैन 20 - mawrapamo u re
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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