SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम निबंधमाला यतियों के समक्ष) उस आचार्य कुवलयप्रभ ने स्पष्ट निडर कथन करके तीर्थंकर नाम कर्म बांधा / (4) दशवैकालिक में- "धिक्कार ह ह अपयश के कामी !" ये शब्द एक साध्वी के द्वारा एक चरम शरीरी भूलपात्र श्रमण के लिये प्रयुक्त हैं / जिसे शास्त्रकार ने संकलित किया और साध्वी के उन वचनों को सुभाषित कहा / (5) भगवती सूत्र में- हे गौतम ! मेरा कुशिष्य गोशालक मरकर बारहवें देवलोक में गया। भगवान स्वयं ने गोशालक के लिये कटुसत्य शब्द प्रयोग किये / (6) रेवति पत्नि को मरकर नरक में जाने का कहने पर महाशतक को प्रायश्चित कराने के लिये भगवान ने गौतम स्वामी को उसके घर भेजा था। फिर भी गौशालक जैसे विधर्मी को प्रत्यक्ष में भगवान ने कहा कि तू खुद सात दिन में मर जायेगा। (7) प्रदेशी राजा के लिये केशी स्वामी ने दाण की चोरी आदि अनेक कटु तीक्ष्ण उपमाओं से आक्षेप युक्त भाषा प्रयोग किया था / देखें-राजप्रश्नीय सूत्र / - सार यह है कि भाषा विवेक के विषय में भी जिनशासन में एकांतिकता नहीं किंतु अनैकांतिकता है / अत: कभी कहीं तीक्ष्ण भाषा प्रयोग भी अनुचित नहीं होता है, इस सत्य को भी समझने की जरूरत है / शास्त्रों में ऐसे ही अनेक दृष्टांत देखने को खोजने से मिल सकते हैं। _ निष्कर्ष यह हुआ कि खोटी परंपराएँ, खोटे धर्म मार्ग, खोटे इतिहास, खोटा आचार ढोंग, खोटी प्ररूपणाएँ, खोटे बकवास कर्ता, आगमों में खोटे प्रक्षेप कर्ता, अति होशियारी कर्ता इत्यादि प्रसंगोपात जो भाषा में तीक्ष्णता हो जाय तो उसे गौण करके लेखक या वक्ता के जिनशासन के प्रति हृदयभाव तथा शोधपूर्वक सत्य ज्ञान के श्रम को आदर देने का कर्तव्य पालन करना श्रेयस्कर होता है / किंतु लेखक के आशय की उपेक्षा करके उसके भाषा प्रयोग की निंदा कर कर्मबंध नहीं करना चाहिये / यही पाठकों को हितावह संसूचन करना है / सुज्ञेषु किं बहुना -समझदारों को इशारा ही काफी है ज्यादा उन्हें क्या कहना / नोट:- इस स्पष्टीकरण का उद्देश्य यही है कि हमारे मुमुक्षु पाठक लेखों की
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy