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________________ आगम निबंधमाला भ्रमित गलत इतिहास की बाते अनेक तर्कों से, प्रश्नों से असमाधित उलझन वाली प्रतीत होती रही और बुद्धि संपन्न लोग भिन्न-भिन्न कल्पना, संगति, समाधान के प्रयत्न प्रयास करने लगे / तो उनकी कल्पना भी अपरिपूर्ण और अधूरे सत्य वाली होने से नये-नये उलझन पूर्ण, आग्रह संयुक्त इतिहास बनते गये हैं। बाद अध्ययनशील चिंतक विद्वान भी उन्हीं विकृत भ्रमित इतिहासों में अपनी तर्क बुद्धि का उपयोग कर करके कुछ मिश्रित नया गलत इतिहास कल्पित कर देते / क्यों कि मूल रूप से प्राप्त इतिहास की ही समीक्षा उन्हीं इतिहासों के आधार से करते हैं / इस प्रकार जैन साहित्य का इतिहास विभाग विविध कारणों से (समय पर नहीं लिख कर सैकडों वर्षों बाद लिखने से) अनेक दूषणों से दूषित बना है और आगम स्वाध्याय अनुप्रेक्षा में भी प्रसंग प्रसंग पर वे इतिहास के कथा प्रसंग आदि दुविधा वाले या बाधक बनते गये हैं अर्थात् आगम से पूर्ण समन्वय न होने से या विरोध पैदा होने से बुद्धिजीवियों के लिये असमंजसकारी होते रहे हैं / / ऐसे अनेक प्रसंगों तत्त्वों को सुसमाधित करने के लिये इतिहास के सर्वांगीण अध्ययन चिंतन मनन अनुभव को, आगम के गहन गंभीर ज्ञान के साथ समन्वयात्मक तथा निर्णयात्मक अनुप्रेक्षण करके अधिक से अधिक सत्य तत्त्व उजागर हो ऐसी तर्क युक्त प्रज्ञा की कषौटी पूर्वक सारसंग्रह प्रस्तुत किया जाना चाहिए। तभी स्वाध्यायियों को यथाशक्य सही शुद्ध प्राचीन इतिहास तत्त्वों के जानने मानने का आनंद अनुभवित होगा। विशेष सूचन :- कदाच धर्म की अत्यंत संक्षिप्त रुचि वाले, आगम साहित्य के अल्प अभ्यासी तथा मात्र अपनी परंपराओं का अनुसरण करने वाले श्रद्धालु जनों के लिये ये इतिहास निबंध रुचिकर या आनंद दायी नहीं हो सके तथापि कुछ विशेष जानने की उत्कंठा वाले उदार चिंतक, उदार विचारशील, बुद्धिशाली, अध्ययनशील, आगम साहित्य के विशेष अभ्यासी स्वाध्यायियों के लिये तो विशेष फलदायी प्रतीत होंगे। नम्र निवेदन यही है कि चिंतनशील पाठक इन इतिहास निबंधों के
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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