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________________ आगम निबंधमाला पूर्वक गुणग्राम है / उसमें कोई समकालीन गुरु भाई आदि भी हैं अंत: उसे पाटानुपाट परंपरा नहीं समझ सकते / कल्पसूत्र में जो नाम, गुण कीर्तन है / वह संकलन भी प्राचीन देवर्द्धिपूर्व का नहीं होकर बहुत बाद का अर्थात् वीर निर्वाण 17001800 वर्ष के लगभग का है / क्यों कि कल्पसूत्र की रचना भी उस समय के पहले नहीं हुई थी एवं वह सूत्र स्वयं भी प्रमाण कोटी में परिपूर्ण नहीं है / उसका नंदी सूत्र में या 32-45 आगम में नाम भी नहीं होकर 85 आगम की संख्या में आता है। अत: उसमें आचार्यों की नामावली भी प्राचीनता के महत्त्व वाली नहीं है तथा उसकी संकलन की भाषा भी डावाँडोल वाली अर्थात् एक निश्चय रूप नहीं हो कर विकल्पों से संयुक्त है / वह शास्त्र स्वयं शुद्ध अस्तित्व वाला न होकर जोड जोडाकर कल्पित किया हुआ है। अतः उसमें उपलब्ध आचार्यों की नामावलि भी महत्त्वशील नहीं कही जा सकती। यो भी इतिहास ग्रंथ बारहवीं तेरहवीं विक्रम की सदी में बनने लगे हैं और यह कल्पसूत्र भी उस समय का होने से उसका महत्त्व उन ग्रंथों जितना प्राचीनता वाला हो सकता है उससे ज्यादा महत्त्वशील नहीं। जब वीर निर्वाण 1700-1800 वर्ष बाद ही इतिहास लिखने की प्रणाली प्रारंभ हुई तो इतने वर्षों पूर्व की सामग्री उन इतिहास ग्रंथ लेखकों को; कितने ही तत्त्व आगमों से, ग्रंथों से, कथानकों से व्याख्या ग्रंथों से, किंवदंतियों से, परंपरा से या अशुद्ध परंपरा से प्राप्त हुए हैं तथा कुछ अपनी बुद्धि कल्पना अनुमान से जोडने भी पडे हैं / कारण कि पूर्व के सैकड़ों वर्षों की घटानाओं के और लेखक के बीच का अंतर बहुत अधिक पड़ चुका था / उस कारण से स्मतियाँ भी भेल संभेलवाली एवं विकृत होने से भ्रमित परंपरा एवं कल्पित परंपराओं का संकलन लेखन गुंथन होना स्वाभाविक होता है / फिर भी समय बीतने पर ऐसे इतिहास ग्रंथों के प्रति भी अंध श्रद्धा और आग्रहवत्तियों के स्थान ले लेने से उन ग्रंथों को झूठमूठ प्राचीनता की छाप लगाने की वत्तियाँ होने लगी अर्थात् उन ग्रंथों को देवर्द्धि पूर्व के होने की प्रसिद्धि करने की प्रवत्तियाँ होने लगी / ऐसे [ 18
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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