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________________ आगम निबंधमाला किसी ग्रन्थ या व्याख्याओं की बात को गौण भी करना पड़े तो उसमें कोई दोष नहीं समझना चाहिए बशर्ते कि वह निर्णय या वह निर्णित पद्धति आगम आज्ञा से विरुद्ध न हो। इस प्रकार संघ हितैषी ज्ञानी आत्माओं को निष्पक्ष भाव से विवेक पूर्वक आवश्यक तत्वों का निर्णय करना चाहिए यही इस पाँच व्यवहारों के सूत्र का प्रमुख आशय है। पाँच व्यवहारों का समझा मर्म / मिला उसे सच्चा जिन धर्म // . निबंध- 50 स्थितकल्प आदि भेद एवं स्वरूप भगवती सूत्र शतक-२५, उद्देशक-६ में कल्पद्वार से विधान है, उस कल्पों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है१. स्थित कल्प- इस कल्प में 10 कल्पों का पूर्ण रूप से नियमतः पालन किया जाता है / 2. अस्थित कल्प- इस कल्प में चार कल्पों का पूर्ण रूप से पालन किया जाता है और शेष 6 कल्पों का वैकल्पिक पालन होता है अर्थात् उनमें से किसी कल्प की कुछ अलग व्यवस्था होती है और किसी कल्प का पालन ऐच्छिक निर्णय पर होता है / 3. स्थविर कल्प- इस कल्प में संयम के सभी छोटे-बड़े नियमउपनियमों का उत्सर्ग रूप से (सामान्यतया) पूर्ण पालन किया जाता है और विशेष परिस्थिति में गीतार्थ-बहुश्रुत की स्वीकृती से अपवाद सेवन किया जा सकता है अर्थात् सकारण संयम मर्यादा से बाह्य आचरण करके उसका आगमोक्त प्रायश्चित्त लिया जाता है एवं परिस्थिति समाप्त होने पर पुनः शुद्ध संयम का पालन किया जाता है; ऐसे उत्सर्ग और अपवाद के वैकल्पिक आचरण वाला यह कल्प स्थविर कल्प है। इस कल्प में गीतार्थ बहुश्रुत की आज्ञा से शरीर एवं उपधि का परिकर्म भी किया जा सकता है / 4. जिन कल्प- "जिन" का अर्थ होता है राग द्वेष के विजेता-वीतराग / अत: जिस कल्प में शरीर के प्रति पूर्ण वीतरागता के तुल्य आचरण होता है वह जिनकल्प कहा - / 186
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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