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________________ आगम निबंधमाला जाता है / इस कल्प में संयम के नियम-उपनियमों में किसी प्रकार का अपवाद सवन नहीं किया जाता है / इसके अतिरिक्त इस कल्प में शरीर एवं उपकरणों का किसी प्रकार का परिकर्म भी नहीं किया जा सकता है / अर्थात् निर्दोष औषध-उपचार करना, कपडे-धोना, सीना आदि भी नहीं किया जाता है / रोग आ जाय, पाँव में काँटा लग जाय, शरीर के किसी अग में चोट लग जाय, खन बहे तो भी कोई उपचार नहीं किया जाता है। ऐसी शारीरिक वीतरागता जिसमें धारण की जाती है, वह 'जिन कल्प' है। 5. कल्पातीत-जो शास्त्राज्ञाओं मर्यादाओं प्रतिबंधों से परे हो जाते हैं, मुक्त हो जाते हैं। अपने ही ज्ञान और विवेक से आचरण करना जिनका धर्म हो जाता है / ऐसे पूर्ण योग्यता सम्पन्न साधकों का आचार 'कल्पातीत' (अर्थात् उक्त चारों कल्पों से मुक्त) कहा जाता है / तीर्थंकर एवं उपशांत वीतराग, क्षीण वीतराग(११-१२-१३-१४वें गुणस्थान वाले) आदि कल्पातीत होते हैं / तीर्थंकर भगवान के अतिरिक्त छद्मस्थ, मोहकर्म युक्त कोई भी साधक कल्पातीत नहीं होते हैं, आगम विहारी हो सकते हैं। दस कल्पों का स्पष्टीकरण :- स्थितकल्प वालों को दस कल्पों का पालन आवश्यक होता है, वे इस प्रकार है(१) अचेल कल्प- मर्यादित एवं अल्प मूल्य वाले सफेद वस्त्र रखना तथा पात्र आदि अन्य उपकरण भी मर्यादित रखना अर्थात् जिस उपकरण की गणना और माप जो भी सूत्रों में बताया है उसका पालन करना और जिनका माप सूत्रों में स्पष्ट नहीं है, उनकी बहुश्रुतों के द्वारा निर्दिष्ट मर्यादानुसार पालन करना, यह अचेलकल्प है / (2) औद्देशिक- समुच्चय साधु समूह के निमित्त बनी वस्तु (आहार मकान आदि) औद्देशिक होती है / व्यक्तिगत निमित्त वाली वस्तु आधाकर्मी होती है / जिस कल्प में औदेशिक का त्याग करना प्रत्येक साधक को आवश्यक होता है, वह औद्देशिक कल्प कहा जाता है / (3) राजपिंड- मुकुटबंध अन्य राजाओं द्वारा अभिषिक्त हो ऐसे बडे राजाओं के घर का आहार राजपिड कहा जाता है तथा उनका अन्य भी अनेक प्रकार का राजपिंड निशीथ सूत्र आदि में बताया गया है, . उसे ग्रहण नहीं करना, यह राजपिंड नामक तीसरा कल्प है। (4) शय्यातर पिंड- जिसके मकान में श्रमण-श्रमणी ठहरते हैं वह 187
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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