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________________ आगम निबंधमाला ऊँचाई तो उनके नाम से ही स्पष्ट हो जाती है, अतः अंतरिक्षजात का 'ऊँचे स्थान' ऐसा अर्थ नहीं करना चाहिए, किन्तु 'आकाशीय अनावतस्थल' ऐसा अर्थ करना चाहिए अर्थात् सूत्र कथित ऊँचे स्थलों के चौतरफा भित्ति आदि न होकर खुला आकाश हो तो वे ऊँचे स्थल अंतरिक्षजात विशेषण वाले कहे जाते हैं। यही अर्थ आचा. श्रु.-२, अ.-२, उ.-१ के इस विषयक विस्तृत पाठ से भी स्पष्ट होता है। क्यों कि सूत्रगत ऊँचे स्थल यदि भित्ति आदि से चौतरफ आवृत्त हों तो गिरने आदि की आचारांग में कही गई सम्भावनाएँ संगत नहीं हो सकती है। अनावृत्त ऊँचे स्थानों में ही सुखाए गये वस्त्र पात्र आदि के उड़ कर गिर जाने की सम्भावना रहती है एवं उससे अयतना और प्रमाद की वृद्धि होती है। इसीलिए आगम में ऊँचे और अनावृत स्थान साधु को अनेक क्रियाएँ करने के लिए निषिद्ध है किन्तु आवृत स्थान में ऊँचे-नीचे किसी भी स्थान का विवेक पूर्वक उपयोग किया जा सकता है। उसमें सूत्रोक्त कोई भी दोष नहीं लगते हैं। क्यों कि पदार्थों का उड़ना, गिरना, पड़ना, भित्ति से अनावृत स्थानों में ही सम्भव हो सकता है। चौतरफ से आवत या उपर से ढके अथवा ऊपर की मंजिल क बंद कमरों में ऐसे कोई दोष संभव नहीं है। अतः सूत्र का सही आशय समझ कर ही प्ररूपणा एवं प्रवृत्ति करनी चाहिए। प्रस्तुत सूत्र कथित प्रायश्चित्त भी ऊँचे और अनावृत (चौतरफ से बिना भित्ति वाले) स्थान पर सूत्र निर्दिष्ट कार्य करने पर ही आता है, ऐसा समझना चाहिए। रस्सी पर कपड़े सुखाना- प्रस्तुत सूत्र में एवं अन्य सूत्रों से चौतरफ से बिना ढ़के हुए छत आदि पर बैठने, रहने, पात्र वस्त्र आदि सुखाने का जो निषेध है, उसकी उचितता स्पष्ट है कि वहाँ से गिरने, पड़ने, दूर उड़ जाने की प्रायः सम्भावना रहती है। ऐसे ही ऊँचे स्थानों में रस्सी पर कपड़े सुखाना भी सूत्रोक्त दोषों से युक्त होता है किन्तु नीचे या ऊँचे चौतरफ से घिरे हुए अथवा सुरक्षित स्थान में रस्सी पर कपड़े सुखाने पर सूत्रोक्त दोषों की सम्भावना नहीं रहती है। प्रश्न हो सकता है कि रस्सी पर कपड़े हवा से हिलते रहने से एव गिरने से वायुकाय की अयतना होती है। समाधान यह है कि रस्सी पर नहीं सुखाकर भूमि पर ही वस्त्र सुखाया जाय तो भी हवा से वह भी हिलता रहता है चारों तरफ पत्थर रख भी दिए जाय तो भी बीच में हिलता रहता 161 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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