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________________ आगम निबंधमाला है। अधिक हवा होने पर भूमि पर सुखाए कपड़े भी इधर-उधर उड़ते रहते हैं। कम हवा हो तो डोरी पर भी ज्यादा नहीं हिलते हैं। समझना यह है कि साधु का पहिना हुवा चद्दर, चोलपट्टा आदि वस्त्र चलने से स्वाभाविक जितना हिलता है काम करने एवं बोलने से स्वाभाविक जो अंग-उपाग हिलते हैं इस प्रकार के हिलने को वायु काय की अकल्पनीय अयतना नहीं कहा जा सकता है। . अतः वस्त्र भूमि पर हो या रस्सी पर मंद हवा से मंद हिलना अकल्पनीय या अयतना नहीं है और अधिक हवा से अधिक हिलता हैं तो ऐसे समय और ऐसी हवा की जगह भूमि पर और रस्सी पर कहीं भी वस्त्र सुखाना ही अविवेक है। उस समय वस्त्र के वेग पूर्वक फटाफट करने की जो प्रवृत्ति होती है वह भूमि पर और रस्सी पर दोनों ही जगह सम्भावित है। कभी कभी भूमि पर अति रज हो तो उसे पूँज कर साफ करने में जितनी क्रिया करनी पड़ती है उतनी रस्सी में नहीं होती है तथा उस धूल से कपड़ा जितना जल्दी अधिक मैला होगा उतना ही जल्दी धोने का प्रमाद खड़ा होगा। वस्त्र धोने में भी हाथ और पानी का अत्यधिक हिलना और मन्थन होता है उसके सामने रस्सी पर सामान्यतया कपड़े का हिलना नगण्य(अल्प) है। अतः विवेक पूर्वक रस्सी पर कपड़ा सूखाना अकल्पनीय नहीं कहा जा सकता और अविवेक है तो भूमि पर सुखाना भी दोषप्रद होगा। सार- विवेक एवं अनुभव तथा हानि लाभ के चिंतन युक्त निर्णय से ही कोई भी प्रवृत्ति करना चाहिए / व्यवहारिक कोई भी प्रवृत्ति में एकांतिक आग्रह हो तो वह अविवेक है। निबंध- 42 भिक्षु का नौका विहार एवं वाहन उपयोग निशीथ सूत्र, उद्देशक-१८, सूत्र-१ में तथा आगे अनेक सूत्रों से नौकाविहार संबंधी प्रायश्चित्त कहा है / चूँकि अप्काय के जीवों की विराधना का भिक्षु त्यागी होता है अतः उसे नौका विहार करना नहीं कल्पत्ता है तथापि आचारांग, बृहत्कल्प तथा दशाश्रुतस्कंध आदि सूत्रो में अपवादरूप विशेष प्रयोजनों से नौका द्वारा जाने का विधान है। | १६रा
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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