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________________ आगम निबंधमाला भी रहती है / अत: इन सूत्रों से सम्पूर्ण रात्रि अग्नि जलने वाले स्थानो का निषेध समझना चाहिए / जिन स्थानों में पुरुष या स्त्री किसी भी स्व पक्ष का निवास होगा वहाँ अग्नि और पानी तो रहेगा ही। क्यों कि वे पीने के लिए पानी रखेंगे एवं अन्य कार्य के लिए समय पर अग्नि और दीपक जलाएंगे। किन्तु उनका पीने का पानी अलग विभाग में रखा जावेगा एवं उनके दीपक और अग्नि भी अलग विभाग में होंगे अथवा अल्पकालीन होंगे सम्पूर्ण दिन रात जलने वाले नहीं होंगे। भाष्यकार ने अग्नि और दीपक सम्बन्धी होने वाले जो दोष बताये हैं वे अधिकतर खुले दीपक में घटित होते हैं तथापि वर्तमान की बिजली में भी कुछ कुछ घटित होते हैं अर्थात् त्रस जीवों की विराधना एवं प्रकाश का उपयोग लेने के परिणाम या प्रवत्ति होना उसमें भी सम्भव है। निष्कर्ष यह है कि गहस्थ की निश्रा वाले अलग विभाग में पानी रहे या अल्प समय के लिए कही पर भी. अग्नि दीपक जले तो भिक्षु को ठहरने में बाधा नहीं है / किन्तु रात्रि भर अग्नि दीपक जले या साधु की निश्रा वाले विभाग में पानी दिन रात रहे तो वहाँ नहीं ठहरना चाहिए / अन्य स्थान के अभाव में 1-2 रात्रि ठहरा जा सकता है / साधु के ठहरने के बाद गहस्थो के अपनी सुविधा के लिए अल्पकालीन जल या दीपक (लाइट) की व्यवस्था की जाती हो तो उसकी कोई बाधा नही समझना चाहिए। पानी के निषेध सूत्र में अचित जल का ही कथन है / तथापि सचित जल की विराधना सम्भव हो तो वहाँ भी नहीं ठहरना चाहिए। . सेल की घडियां उपाश्रय में रखी हों तो उसका इन सूत्रों से कोई सम्बन्ध नहीं है अर्थात् ऐसी घड़ी युक्त उपाश्रय में ठहरने में कोई बाधा नहीं है / क्यों कि उपर कहे गये भाष्योक्त कोई भी दोष या विराधना होने की स्थिति इसमें नहीं होती है / निबंध- 41 ऊपर की मंजिल एवं डोरी पर कपडे . निशीथ सूत्र, उद्देशक-१३, सूत्र-११में अंतरिक्षजात मकान में ठहरने का प्रायश्चित्त कहा है / मंच, माल, मकान की छत आदि स्थलों की
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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