________________ आगम निबंधमाला .. लकीर, लाइन, ये अर्थ कार शब्द के है / गाथा रचना में चार पादचार लकीरे-लाइने छोटी-छोटी होती है उसे साहित्य की भाषा में चार चरण का श्लोक कहा जाता है / तो नमस्कार सूत्र में प्रथम गाथा में पाँच पद है और दूसरी गाथा में चार चरण गिने हैं इन्हें ही जोडकर नव-कार (लाइन-पद) बनते हैं / इस प्रकार नव पद वाले नमस्कार सूत्र को परम्परा में कभी किसी ने नवकार कहने रूप चला दिया है और सूत्र की जगह लौकिक प्रवाह से मंत्र लगाना पसंद कर लिया है यो यह हमारा आवश्यक सूत्र का प्रथम पाठ नमस्कार सूत्र-नवकार मंत्र बन गया है। नमस्कार किसको ? :- इस सूत्र में पाँच पदों को ही नमस्कार किया गया है। इन पाँच पदों में पाँच प्रकार के गुणवान आत्माओं का संकलन है / यो पाँचों प्रकार की आत्माएँ धर्म आदि गुणों को धारण करने से महान और नमस्करणीय होती है / हमारे शास्त्र आवश्यक सूत्र में नमस्कार सूत्र भी है और मंगल सूत्र भी है / नमस्कार सूत्र में नमस्कार गुणवान आत्मा को ही है गुणों या धर्म को नमस्कार नहीं है। मंगलसूत्र में चार मंगल चार उत्तम और चार शरण कहे हैं / उसमें गुणवान धर्मवान और धर्म-गुण दोनों लिये हैं / परंतु नमस्कार में एक ही गुणी लिये गये हैं / अत: धर्म और गुण स्वयं आदरणीय, शरणभूत, उत्तम है किंतु धम्म नमामि-गुणं नमामि ऐसा नहीं होता है / इसलिये नमस्कार सूत्र में धर्म को नहीं लिया गया है / अत: कोई ज्ञानं नमामि, दर्शनं नमामि, चारित्रं नमामि कहे तो अनुपयुक्त है / ये गुण आदरणीय है / वंदनीय नमस्करणीय तो गुणसंपन्न गुणी आत्मा ही होते हैं! हमारे नमस्कार सूत्र में गणधरों ने गुणवान पाँच प्रकार की आत्मओं का ही संग्रह किया है / अत: हमें किसी भी प्रवाह में आकार गुणों को या धर्म को नमस्करणीय नहीं समझना चाहिये / ये गुण आचारणीय है। यदि गुण भी नमस्करणीय होते तो गणधर पाँच पद की जगह और भी दो चार पद कर सकते थे किंतु गणधरों ने ऐसा नहीं किया है / पँच परमेष्ठी गुणवानों को ही नमस्कार सूत्र में रखा है। धम को शरण वाले सूत्र में रखा है / यथा- केवली पण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि /