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________________ आगम निबंधमाला ब्राह्मीलिपि आदि को नमस्कार भी लिखा है कारण यह है कि भगवती सूत्र बहुत बडा होने से लहिये लोग अपने कार्य की पूर्णता के मंगल रूप में कितन ही नमस्कार आदि मंगल रूप में लिखते थे और अंत मंगल भी लिखत थे / स्वयं भगवती सूत्र के टीकाकार श्री अभयदेव सूरिजी ने ऐसे पाठों को लहियों के होने का स्वीकार किया है / अन्यथा अनेक देवी-देवता को नमस्कार करना गणधर प्रभु के लिये मानना पडेगा, जो सिद्धांत विपरीत होता है / अतः भगवती आदि कोई भी सूत्र के प्रारंभ में किये गये नमस्कार तो बाद में लहियों द्वारा आये समझना चाहिये। कल्पसूत्र के प्रारंभ में भी नवकार मंत्र आता है वह भी कई प्रतियों में होता है और कोई भंडार की प्रत में नहीं भी होता है इससे भी स्पष्ट होता है कि यह सूत्र के प्रारंभ के आदि मंगलरूप नमस्कार लेखन कर्ताओं के इच्छा रुचि अनुसार आये हैं / नवकार मंत्र का नाम : विचारणा :- इस मंत्र का शुद्ध नाम नमस्कार सूत्र है / यह आवश्यक सूत्र का प्रथम सूत्र है और इसमें पंचपरमेष्ठी को नमस्कार किया गया है / अतः इसका शुद्ध नाम नमस्कार सूत्र है। मंत्र शब्द बाद में जनप्रवाह की रूचि से जोडा गया शब्द है। उसकी दो गाथाओं रूप पाठ में कहीं भी मंत्र शब्द नहीं है / ऐसो पंच णमुक्कारो यह कथन है / अत: इसका सही नाम नमस्कार सूत्र या पंचपरमेष्ठी नमस्कार सूत्र है / मंत्र कहना आदि यह लौकिक रुचि, लौकिक प्रवाह से चला चलाया समझना चाहिये / नवकार या नमस्कार :- इस सूत्र में नमस्कार किया गया होने से नमस्कार सूत्र या प्रवाह से नमस्कार मंत्र कहा जाना तो समझ में आता है परंतु नवकार यह शब्द कहाँ से आया, कैसे आया ? समाधान :- नव शब्द संख्यावची है यह तो स्पष्ट है इस पाठ में पाँच परमेष्ठी को नमस्कार है तो नव की संख्या का सूचन किस लिये ? तर्कबुद्धि से समझना है कि कार शब्द का अर्थ होता लकीर, यथारामायण में आता है रामचन्द्रजी सीता को अकेली छोडकर गये तब कार खींच कर गये थे, जिससे रावण अंदर नहीं घुस सका था / अत: | 15 / /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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