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________________ आगम निबंधमाला व्यर्थ की खोटी गप्प मात्र ही है / वीर निर्वाण की तेरहवीं शताब्दि के आचार्य अगस्त्यसिंह सूरिजी ने दशवैकालिक सूत्र की चूर्णि नामक व्याख्या संस्कृत-प्राकृत में (मिश्र भाषा में) बनाई है उसमें दोनों चूलिका को सूत्र के 10 अध्ययन के साथ मौलिक रूप में ही स्वीकारा है और उस चूलिका की गाथाओं की व्याख्या करते हुए स्पष्ट लिखा है कि अब आगे की गाथा में स्वयंभवाचार्य ने यह प्रतिपादन किया है - वहाँ उन्होंने चूलिका महाविदेह से लाई होने की किंचित् भी चर्चा नहीं करो है सीधे ही सरलता पूर्वक स्वयंभवाचार्य की रचना ही चूलिका को बताया है। ___ यो सर्वत्र चूलिका-चोटी मौलिक ही होती है / अत: पंच परमेष्ठी नवकार मंत्र में दूसरी गाथा चूलिका रूप है अर्थात् उसमें मूल विषय नमस्कार नहीं है किंतु नमस्कार का महात्म्य दर्शाया होने से शिखर रूप, चूलिका रूप है / अत: हमारा बोला जानेवाला नवकार मंत्र दो श्लोकमय गणधर रचित आवश्यक सूत्र का प्रथम पाठ है। उसे अधूरा स्वीकारना भ्रम है, गलत है / अर्थात् मूल बात जो दिमांग में खोटी घुस गई है, घुसाई गई है उसे दिमाग में से निकाल देना चाहिये कि "चूलिका कोई अलग चीज होती है और बाद में पीछे से जोडी होती है" उपर दिये गये मानव, पर्वत, दृष्टिवाद, दशवैकालिक आदि के उदाहरणों से सही समझ कर, भ्रमित समझ को निकाल देना चाहिये / प्रश्न होता है कि भगवती सूत्र के प्रारंभ में नवकार मंत्र अधूरा ही है क्यों? उपर समाधान कर दिया गया है कि नवकार मंत्र आवश्यक सूत्र का प्रथम पाठ है और वह परिपूर्ण दो गाथामय है / अन्य शास्त्रों में, किसी भी लेखन के प्रारंभ में लेखक मंगलरूप में कहीं कोई एक पद ही लिखते है यथा कोई अपनी पसंद से अपने लेखन के प्रारंभ में नमो सिद्धाण इतना ही लिखते है और कोई नमो अरिहंताणं ऐसा भी लिखते है, यह तो लेखक की अपनी पसंद है / उसी तरह भगवती सूत्र का नवकार मंत्र तो लहियों का अपनी अपनी पसंद का लिखा नमस्कार रूप आदि मंगल है / लहियों ने वहाँ शुरू में सूत्र देवता तथा mu
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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