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________________ आगम निबंधमाला अनेक प्रकार के मूर्ख, भ्रमित बुद्धि वाले (14) कर्जदार- अन्य की सम्पत्ति उधार लेकर न देने वाला (15) मुंगित(हीन)- जाति से, कर्म से, शिल्प से हीन और शरीर से हीनांग(जिसके नाक, कान, पैर, हाथ आदि कटे हुए हों) (16) बद्ध- कर्म, शिल्प, विद्या, मंत्र आदि सीखने या सिखाने के निमित्त किसी के साथ प्रतिज्ञा बद्ध हो (17) भृतक- दिवस भृतक, यात्राभृतक आदि (18) अपहृत- माता-पिता आदि की आज्ञा बिना अदत्त लाया हुआ बालक आदि, (19) गर्भवती स्त्री (20) बालवत्सा- दूध मुहे बच्चे वाली स्त्री / भाष्य में इनके अनेक भेद-प्रभेद किए है तथा इन्हें दीक्षा देने से होने वाले दोषों और उनके प्रायश्चित्तों के अनेक विकल्प कहे हैं। आगमविहारी, अतिशयज्ञानी इन भाष्यवर्णित अनेकों को यथा अवसर दीक्षा दे सकते हैं / 'बालवय' वाले को कारणवश गीतार्थ दीक्षा दे सकते हैं, ऐसा तो ठाणांग सूत्र अ. 5, सूत्र 108 मूलपाठ से फलित होता है कितु बालवत्सा और गर्भवती को तथा नपुंसक को कारणवश भी दीक्षा नहीं दे सकते / / ___ भाष्य-गाथा 3738 में, बीस प्रकार के अयोग्यों में से कुछ को यथावसर दीक्षा दी भी जा सकती है, ऐसा बताया है किन्तु गीतार्थ भिक्षु को यह अधिकार भी अन्य गीतार्थ की सलाह से ही होता है। अन्यथा उसे भी प्रायश्चित्त आता है। दीक्षा के योग्य व्यक्ति - 1. आर्यक्षेत्रोत्पन्न, 2. जातिकुल सम्पन्न, 3. लघुकर्मी-हलुकर्मी, 4. निर्मल बुद्धि, 5. संसार समुद्र में मनुष्य भव की दुर्लभता, जन्म-मरण के दु:ख, लक्ष्मी की चंचलता, विषयों के दु:ख, इष्ट पदार्थो के संयोग-वियोग, आयु की क्षणभंगुरता, मरण पश्चात् परभव का अति रौद्र विपाक और संसार की असारता आदि भावों को जानने वाला, 6. संसार से विरक्त, 7. अल्पकषायी, 8. अल्पहास्यादि(कुतहलवृत्ति से रहित), 9. सुकृतज्ञ, 10. विनयवान, 11. राज्य-अपराध रहित, 12. सुडोल शरीर, 13. श्रद्धावान, 14. स्थिर चित्त वाला एवं 15. सम्यग् उपसम्पन्न (शिक्षा ग्रहण)। इन गुणों से सम्पन्न को दीक्षा देनी चाहिए अथवा इनमें से एक / 108
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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