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________________ आगम निबंधमाला दो गुण न भी हो तो बहुगुण सम्पन्न को दीक्षा दी जा सकती है। - अभि. राजेन्द्र कोष 'पवज्जा' पृ. 739 / दीक्षादाता के लक्षण- उपर्युक्त पन्द्रह गुण सम्पन्न तथा 16. विधिपूर्वक प्रवजित 17. सम्यक् प्रकार से गुरुकुलवास सेवी, 18. प्रव्रज्या ग्रहण काल से सतत अखण्ड शीलवाला 19. परद्रोह रहित, 20. यथोक्त विधि से ग्रहीत सूत्र वाला 21. सूत्रों एवं अध्ययनों आदि के पूर्वापर सम्बन्धों के ज्ञान में निष्णात 22. तत्त्वज्ञ 23. उपशांत 24. प्रवचन वात्सल्ययुक्त 25. प्राणियों के हित में रत 26. आदेय वचन वाला 27. भावों की अनुकूलता से शिष्यों की परिपालना करने वाला 28. गम्भीर (उदारमना) 29. परीषह आदि आने पर दीनता न दिखाने वाला 30. उपशमलब्धि सम्पन्न(उपशांत करने में चतुर) उपकरण लब्धि सम्पन्न, स्थिरहस्त लब्धि सम्पन्न, 31. सूत्रार्थवक्ता 32. स्वगुरुअनुज्ञात गुरुपद वाला। ऐसे गुण वाले विशिष्ट साधक को गुरु बनाना चाहिए। - अभि. राजेन्द्र कोष 'प्रवज्जा' पृ. 734 दीक्षार्थी के प्रति दीक्षादाता का कर्तव्य- (1) दीक्षार्थी से पूछना चाहिए कि 'तुम कौन हो ?' क्यों दीक्षा लेते हो ? तुम्हें वैराग्य उत्पन्न कैसे हुआ? इस प्रकार पूछने पर योग्य प्रतीत हो तथा अन्य किसी प्रकार से अयोग्य ज्ञात न हो तो दीक्षा देना कल्पता है। (2) दीक्षा के योग्य जानकर उसे यह साध्वाचार कहना चाहिए यथा- 1. प्रतिदिन भिक्षा के लिये जाना, 2. भिक्षा में अचित्त पदार्थ लेना, 3. वह भी एषणा आदि दोषों से रहित शुद्ध ग्रहण करना, 4. लाने के बाद बाल-वृद्ध आदि को देकर समविभाग से खाना, 5. स्वाध्याय में सदा लीन रहना, 6. आजीवन स्नान नहीं करना, 7. भूमि पर या पाट पर शयन करना, 9. लोच आदि के कष्टों को सहन करना आदि / यदि वह यह सब सहर्ष स्वीकार कर ले तो उसे दीक्षा देनी चाहिए। -नि. चूर्णि पृ. 278 / नवदीक्षित भिक्षु के प्रति दीक्षादाता का कर्तव्य- 1. 'शस्त्रपरिज्ञा' का अध्ययन कराना अथवा 'छज्जीवनिका' का अध्ययन कराना / 2. उसका अर्थ-परमार्थ समझाना कि ये पृथ्वी आदि जीव है, धूप छाया [109 /
SR No.004412
Book TitleAgam Nimbandhmala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTilokchand Jain
PublisherJainagam Navneet Prakashan Samiti
Publication Year2014
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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